Pages

Tuesday, 30 May 2017

#Interesting#Facts#of#Lord- Shiva#भगवान शिव, शंकर, महादेव, भोलेनाथ से जुड़े रोचक तथ्य,

।। भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।।

                     
 आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। इस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान.बनाया। 
                         सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है।इस 'आदिश' शब्द से ही 'आदेश' शब्द बना है। नाथ साधु जब एक--दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश।
                           शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है,कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। ‘शि’ का अर्थ है,पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी दाता।

क्या है शिवलिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग ?
शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।
शिव, शंकर, महादेव…?
शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं – शिव शंकर भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई
लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।
           भगवान शिव जितने रहस्यमयी हैं, उनकी वेश-भूषा व उनसे जुड़े तथ्य उतने ही विचित्र हैं। शिव श्मशान में निवास करते हैं, गले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहण करते हैं। आदि न जाने कितने रोचक तथ्य इनके साथ जुड़े हैं। आज हम आपको भगवान शिव से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातें व इनमें छिपे लाइफ मैनेजमेंट के सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
★ भगवान शिव का कोई माता-पिता नही है. उन्हें अनादि माना गया है. मतलब, जो हमेशा से था. जिसके जन्म की कोई तिथि नही.
★ कथक, भरतनाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है उसे नटराज कहते है.
★ किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही होती. लेकिन शिवलिंग चाहे कितना भी टूट जाए फिर भी पूजा जाता है.
★ शंकर भगवान की एक बहन भी थी अमावरी. जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद महादेव ने अपनी माया से बनाया था.
★ भगवान शिव और माता पार्वती का 1 ही पुत्र था. जिसका नाम था कार्तिकेय. गणेश भगवान तो मां पार्वती ने अपने उबटन (शरीर पर लगे लेप) से बनाए थे.
★ भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था क्योकिं गणेश ने शिव को पार्वती से मिलने नही दिया था. उनकी मां पार्वती ने ऐसा करने के लिए बोला था.
★ भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था. जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था.
★ शंकर भगवान पर कभी भी केतकी का फुल नही चढ़ाया जाता. क्योंकि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था.
★ शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है. लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है कि बिना जल के बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता.
★ शंकर भगवान और शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता. क्योकिं शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था. आपको बता दें, शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था.
★ भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा रहता है उसका नाम है वासुकि. यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था. भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में डालने का वरदान दिया था. 
★जिस बाघ की खाल को भगवान शिव पहनते है उस बाघ को उन्होनें खुद अपने हाथों से मारा था.
★ चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान मिला हुआ है.
★ नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी गणों में सबसे ऊपर भी है. वह असल में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था. जो बाद में कठोर तप के कारण नंदी बना था 
★ गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है ? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा. तब शंकर भगवान को मनाया गया कि पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें.
★ शंकर भगवान का शरीर नीला इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होने जहर पी लिया था. दरअसल, समुंद्र मंथन के समय 14 चीजें निकली थी. 13 चीजें तो असुरों और देवताओं ने आधी-आधी बाँट ली लेकिन हलाहल नाम का विष लेने को कोई तैयार नही था. ये विष बहुत ही घातक था इसकी एक बूँद भी धरती पर बड़ी तबाही मचा सकती थी. तब भगवान शिव ने इस विष को पीया था. यही से उनका नाम पड़ा नीलकंठ.
सभी देवताओं में भगवान शिव एक ऐसे देवता है जो अपने भक्तों की पूजा पाठ सेबहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है और यही कारण था की असुर भी वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या किया करते थे और उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर लेते थे।
शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था।  
शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।  
त्रिशूल:-यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा-पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है।  
शिव का सेवक वासुकी  -नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक। ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे सर्प और आधे मानव? हालांकि इन सभी को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है तो निश्‍चित ही ये मनुष्य नहीं होंगे।  
शिव पंचायत:-पंचायत का फैसला अंतिम माना जाता है। देवताओं और दैत्यों के झगड़े आदि के बीच जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता था तो शिव की पंचायत का फैसला अंतिम होता था। शिव की पंचायत में 5 देवता शामिल थे।  ये 5 देवता थे:- 1. सूर्य, 2. गणपति, 3. देवी, 4. रुद्र और 5. विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
  ★ भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है. इसलिए कहते है, तीसरी आँख बंद ही रहे प्रभु की...
हर हर महादेव ...

Sunday, 28 May 2017

*सुखमय वृद्धावस्था **

50 year



*50 वर्ष से अधिक उम्र वाले इस सन्देश को सावधानी पूर्वक पढ़ें*, क्योंकि यह उनके आने वाले जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्व पूर्ण :

        *सुखमय वृद्धावस्था *

*1* 🏠 *अपने स्वयं के स्थायी स्थान पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन जीने का आनंद ले सकें!* 

*2*💵 *अपना बैंक बेलेंस और भौतिक संपत्ति अपने पास रखें! अति प्रेम में पड़कर किसी के नाम                  करने की ना सोचें।*

*3* *अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय        बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल जाती है और कभी कभी चाहते हुए भी वे कुछ              नहीं कर पाते* 👬

*4*👥 *उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल रखें जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हैं ,             यानी सच्चे हितैषी हों।* 🙏

*5* 🙌 *किसी के साथ अपनी तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई उम्मीद रखें!*

*6* 👫 *अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करें, उन्हें अपने तरीके से अपना जीवन जीने              दें और आप अपने तरीके से अपना जीवन जीएँ!*

*7* 👳 *अपनी वृद्धावस्था को आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने, सम्मान पाने का प्रयास कभी              ना करें।*

*8* 🖐 *लोगों की बातें सुनें लेकिन अपने स्वतंत्र विचारों के आधार पर निर्णय लें।*

*9*👏 *प्रार्थना करें लेकिन भीख ना मांगे, यहाँ तक कि भगवान से भी नहीं। अगर भगवान से कुछ               मांगे तो सिर्फ माफ़ी और हिम्मत!* 

*10* 💪 *अपने स्वास्थ्य का स्वयं ध्यान रखें, चिकित्सीय परीक्षण के अलावा अपने आर्थिक सामर्थ्य                 अनुसार अच्छा पौष्टिक भोजन खाएं और यथा सम्भव अपना काम अपने हाथों से करें! छोटे               कष्टों पर ध्यान ना दें, उम्र के साथ छोटी मोटी शारीरिक परेशानीयां चलती रहती हैं।*

*11* 😎 *अपने जीवन को उल्लास से जीने का प्रयत्न करें खुद प्रसन्न रहने की चेष्टा करें और दूसरों                  को प्रसन्न रखें।*

*12* 💏 *प्रति वर्ष  अपने जीवन  साथी केे साथ भ्रमण/ छोटी यात्रा पर एक या अधिक बार अवश्य                 जाएं,  इससे आपका जीने का नजरिया बदलेगा!*

*13* 😖 *किसी भी टकराव को टालें एवं तनाव रहित जीवन जिऐं!* 
   
*14* 😫 *जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है चिंताएं भी नहीं इस बात का विश्वास करें !*

*15* 😃 *अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को रिटायरमेंट तक  पूरा कर लें, याद रखें जब तक आप                 अपने लिए जीना शुरू नहीं करते हैं तब तक आप जीवित नहीं हैं!*

😀 *खुशनुमा जीवन की शुभकामनाओं के साथ*                         🌹🌹🌹🌹🌹🌹

Wednesday, 24 May 2017

14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे?

14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे?


प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।
रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।
जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आईये जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में…
पहला पड़ाव…
1.केवट प्रसंग : राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था।
‘सिंगरौर’ : इलाहाबाद से 22 मील (लगभग 35.2 किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित ‘सिंगरौर’ नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे ‘तीर्थस्थल’ कहा गया है।
‘कुरई’ : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।
इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
दूसरा पड़ाव…
2.चित्रकूट के घाट पर : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि।
चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।
तीसरा पड़ाव…
3.अत्रि ऋषि का आश्रम : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी।
अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और ‘मंदाकिनी’ नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी ‘दत्तात्रेय’।
अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र का नाम था ‘दुर्वासा’। दुर्वासा ऋषि को कौन नहीं जानता?
Durvasa and Sakunlata
अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका वर्णन मिलता है।
प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, ‘हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।’
राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देकर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया।
चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए घने जंगलों में…
चौथा पड़ाव,
4. दंडकारण्य : अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। ‘अत्रि-आश्रम’ से ‘दंडकारण्य’ आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।
‘अत्रि-आश्रम’ से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां ‘रामवन’ हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।
राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम ‘रामगढ़’ है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे ‘सीता कुंड’ कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम ‘लक्ष्मण बोंगरा’ और ‘सीता बोंगरा’ हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है।
वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की ‘बारसूर’ नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है।
इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे।
स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।
दंडकारण्य क्षे‍त्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था।
डॉ. रमानाथ त्रिपाठी ने अपने बहुचर्चित उपन्यास ‘रामगाथा’ में रामायणकालीन दंडकारण्य का विस्तृत उल्लेख किया है।
पांचवां पड़ाव…
‘पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी’।
5. पंचवटी में राम : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया।
उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।
अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है।
ये पांच वृक्ष थे पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।
यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है।
मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।
छठा पड़ाव..                                            सर्वतीर्थ घोटी ताकेद नासिक
6.सीताहरण का स्थान ‘सर्वतीर्थ’ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।
जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था।
इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।
सातवां पड़ाव....
7.सीता की खोज : सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।
आठवां पड़ाव…
8.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है।
शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा।
पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे ‘पम्बा’ नाम से भी जाना जाता है। ‘पम्पा’ तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ ‘रामायण’ में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।
केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
नौवां पड़ाव…
kishkinda near hampi, Anjaneya Parvat
,Lord Hanuman, Vanara King Sugriva
 place
9.हनुमान से भेंट : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया।
ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था।
ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था।
दसवां पड़ाव..
10.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया।
तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है।
लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।
ग्यारहवां पड़ाव…
11.रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
बारहवां पड़ाव…
12.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया।
छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं।
धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।
दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया।
30 मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु 5 से 30 फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था।
तेरहवां पड़ाव…
the-ravana-palace-which-was-burnt-by-hanuman
13.’नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। ‘नुवारा एलिया’ पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं।
श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं
* कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू)
* बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू)
* कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू)
* नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी)
* नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी)
* श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना ‘जानकी हरण’ (सातवीं शताब्दी)

Saturday, 20 May 2017

" चूना अमृत है " ..

चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है....!
" चूना अमृत है " ..
🤔👌🏻👌🏻🤔👌🏻👌🏻🤔👌🏻👌🏻


* चूना एक टुकडा छोटे से मिट्टी के बर्तन मे डालकर पानी से भर दे ,
 चूना गलकर नीचे और पानी ऊपर होगा ! 

वही एक चम्मच पानी किसी भी खाने की वस्तु के साथ लेना है !
 50 के उम्र के बाद कोई कैल्शियम की दवा शरीर मे जल्दी नही
घुलती चूना तुरन्त घुल व पच जाता है ...


* जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने जॉन्डिस
उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना ;गेहूँ के दाने के बराबर
चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी
पीलिया ठीक कर देता है ।


* ये ही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है -अगर
किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस
के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में
भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर
में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना ।


* बिद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो
लम्बाई बढाता है ..


* गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के
खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिला के खाओ, 
दाल नही है तो पानी में मिला के पियो -
इससे लम्बाई बढने के साथ स्मरण शक्ति भी बहुत
अच्छा होता है ।


* जिन बच्चों की बुद्धि कम काम करती है मतिमंद
बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना .जो बच्चे बुद्धि से कम है, 
दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है 
उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।


* बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी
तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है
चूना । हमारे घर में जो माताएं है  जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी 
और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना..


* गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, 
नही तो पानी में घोल के पीना । जब कोई माँ गर्भावस्था में है 
तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा
केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है । 
गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए ..अनार के रस में -
अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये
मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये..तो चार फायदे होंगे -
पहला फायदा :-
माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगा,
दूसरा :-
बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा ,
तीसरा फ़ायदा :-
बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया ,
चौथा सबसे बड़ा लाभ :-
बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent औरBrilliant होता है
 उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।


* चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है ,
कंधे का दर्द ठीक करता है,


* एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चूने से ठीक होता है ।

* कई बार हमारे रीढ़की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है
- ये चूना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होता है । 
अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है । 
चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।


* मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है ,


* मुंह में अगर छाले हो गए है तो चूने का पानी पियो
तुरन्त ठीक हो जाता है ।


* शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , 
एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना , 
चूना पीते रहो गन्ने के रस में या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है
अनार के रस में - अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है , बहुत
जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना 
सुबह खाली पेट ।


* घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो 
तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा खाइए
 घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे । —
😂🤑😏😜

Friday, 12 May 2017

#Global Monsoons And Its Mechanism#

Mechanism of Monsoons
Monsoons are large-scale sea breezes which occur when the temperature on land is significantly warmer or cooler than the temperature of the ocean. These temperature imbalances happen because oceans and land absorb heat in different ways. Over oceans, the air temperature remains relatively stable for two reasons: water has a relatively high heat capacity (3.9 to 4.2 J g−1 K−1), and because both conduction and convection will equilibrate a hot or cold surface with deeper water (up to 50 meters). In contrast, dirt, sand, and rocks have lower heat capacities (0.19 to 0.35 J g−1 K−1), and they can only transmit heat into the earth by conduction and not by convection. Therefore, bodies of water stay at a more even temperature, while land temperature are more variable.

During warmer months’ sunlight heats the surfaces of both land and oceans, but land temperatures rise more quickly. As the land's surface becomes warmer, the air above it expands and an area of low pressure develops. Meanwhile, the ocean remains at a lower temperature than the land, and the air above it retains a higher pressure. This difference in pressure causes sea breezes to blow from the ocean to the land, bringing moist air inland. This moist air rises to a higher altitude over land and then it flows back toward the ocean (thus completing the cycle). However, when the air rises, and while it is still over the land, the air cools. This decreases the air's ability to hold water, and this causes precipitation over the land. This is why summer monsoons cause so much rain over land.

In the colder months, the cycle is reversed. Then the land cools faster than the oceans and the air over the land has higher pressure than air over the ocean. This causes the air over the land to flow to the ocean. When humid air rises over the ocean, it cools, and this causes precipitation over the oceans. (The cool air then flows towards the land to complete the cycle.)

Most summer monsoons have a dominant westerly component and a strong tendency to ascend and produce copious amounts of rain (because of the condensation of water vapor in the rising air). The intensity and duration, however, are not uniform from year to year. Winter monsoons, by contrast, have a dominant easterly component and a strong tendency to diverge, subside and cause drought.

Similar rainfall is caused when moist ocean air is lifted upwards by mountains, surface heating, convergence at the surface, divergence aloft, or from storm-produced outflows at the surface. However the lifting occurs, the air cools due to expansion in lower pressure, and this produces condensation.
Global monsoons 

Africa

The monsoon of western Sub-Saharan Africa is the result of the seasonal shifts of the Intertropical Convergence Zone and the great seasonal temperature and humidity differences between the Sahara and the equatorial Atlantic Ocean. It migrates northward from the equatorial Atlantic in February, reaches western Africa on or near June 22, then moves back to the south by October. The dry, northeasterly trade winds, and their more extreme form, the harmattan, are interrupted by the northern shift in the ITCZ and resultant southerly, rain-bearing winds during the summer. The semiarid Sahel and Sudan depend upon this pattern for most of their precipitation.

North America

The North American monsoon (NAM) occurs from late June or early July into September, originating over Mexico and spreading into the southwest United States by mid-July. It affects Mexico along the Sierra Madre Occidental as well as Arizona, New Mexico, Nevada, Utah, Colorado, West Texas and California. It pushes as far west as the Peninsular Ranges and Transverse Ranges of Southern California, but rarely reaches the coastal strip (a wall of desert thunderstorms only a half-hour's drive away is a common summer sight from the sunny skies along the coast during the monsoon). The North American monsoon is known to many as the Summer, Southwest, Mexican or Arizona monsoon. It is also sometimes called the Desert monsoon as a large part of the affected area are the Mojave and Sonoran deserts. However, it is debatable whether the North and South American weather patterns with incomplete wind reversal should be counted as true monsoons. 

Asia

The Asian monsoons may be classified into a few sub-systems, such as the Indian Subcontinental Monsoon which affects the Indian subcontinent and surrounding regions including Nepal, and the East Asian Monsoon which affects southern China, Taiwan, Korea and parts of Japan.

South Asian monsoon

The southwestern summer monsoons occur from July through September. The Thar Desert and adjoining areas of the northern and central Indian subcontinent heat up considerably during the hot summers. This causes a low pressure area over the northern and central Indian subcontinent. To fill this void, the moisture-laden winds from the Indian Ocean rush into the subcontinent. These winds, rich in moisture, are drawn towards the Himalayas. The Himalayas act like a high wall, blocking the winds from passing into Central Asia, and forcing them to rise. As the clouds rise their temperature drops and precipitation occurs. Some areas of the subcontinent receive up to 10,000 mm (390 in) of rain annually.

The southwest monsoon is generally expected to begin around the beginning of June and fade away by the end of September. The moisture-laden winds on reaching the southernmost point of the Indian Peninsula, due to its topography, become divided into two parts: the Arabian Sea Branch and the Bay of Bengal Branch.

The Arabian Sea Branch of the Southwest Monsoon first hits the Western Ghats of the coastal state of Kerala, India, thus making this area the first state in India to receive rain from the Southwest Monsoon. This branch of the monsoon moves northwards along the Western Ghats (Konkan and Goa) with precipitation on coastal areas, west of the Western Ghats. The eastern areas of the Western Ghats do not receive much rain from this monsoon as the wind does not cross the Western Ghats.

The Bay of Bengal Branch of Southwest Monsoon flows over the Bay of Bengal heading towards North-East India and Bengal, picking up more moisture from the Bay of Bengal. The winds arrive at the Eastern Himalayas with large amounts of rain. Mawsynram, situated on the southern slopes of the Khasi Hills in Meghalaya, India, is one of the wettest places on Earth. After the arrival at the Eastern Himalayas, the winds turns towards the west, travelling over the Indo-Gangetic Plain at a rate of roughly 1–2 weeks per state, pouring rain all along its way. June 1 is regarded as the date of onset of the monsoon in India, as indicated by the arrival of the monsoon in the southernmost state of Kerala.

The monsoon accounts for 80% of the rainfall in India[. Indian agriculture (which accounts for 25% of the GDP and employs 70% of the population) is heavily dependent on the rains, for growing crops especially like cotton, rice, oilseeds and coarse grains. A delay of a few days in the arrival of the monsoon can badly affect the economy, as evidenced in the numerous droughts in India in the 1990s.

The monsoon is widely welcomed and appreciated by city-dwellers as well, for it provides relief from the climax of summer heat in June. However, the roads take a battering every year. Often houses and streets are waterlogged and slums are flooded despite drainage systems. A lack of city infrastructure coupled with changing climate patterns causes severe economic loss including damage to property and loss of lives, as evidenced in the 2005 flooding in Mumbai that brought the city to a standstill. Bangladesh and certain regions of India like Assam and West Bengal, also frequently experience heavy floods during this season. Recently, areas in India that used to receive scanty rainfall throughout the year, like the Thar Desert, have surprisingly ended up receiving floods due to the prolonged monsoon season.

The influence of the Southwest Monsoon is felt as far north as in China's Xinjiang. It is estimated that about 70% of all precipitation in the central part of the Tian Shan Mountains falls during the three summer months, when the region is under the monsoon influence; about 70% of that is directly of "cyclonic" (i.e., monsoon-driven) origin (as opposed to "local convection").

Northeast monsoon

Around September, with the sun fast retreating south, the northern land mass of the Indian subcontinent begins to cool off rapidly. With this air pressure begins to build over northern India, the Indian Ocean and its surrounding atmosphere still holds its heat. This causes cold wind to sweep down from the Himalayas and Indo-Gangetic Plain towards the vast spans of the Indian Ocean south of the Deccan peninsula. This is known as the Northeast Monsoon or Retreating Monsoon.

While travelling towards the Indian Ocean, the dry cold wind picks up some moisture from the Bay of Bengal and pours it over peninsular India and parts of Sri Lanka. Cities like Chennai, which get less rain from the Southwest Monsoon, receive rain from this Monsoon. About 50% to 60% of the rain received by the state of Tamil Nadu is from the Northeast Monsoon. In Southern Asia, the northeastern monsoons take place from December to early March when the surface high-pressure system is strongest. The jet stream in this region splits into the southern subtropical jet and the polar jet. The subtropical flow directs northeasterly winds to blow across southern Asia, creating dry air streams which produce clear skies over India. Meanwhile, a low pressure system develops over South-East Asia and Australasia and winds are directed toward Australia known as a monsoon trough.

East Asian Monsoon

The East Asian monsoon affects large parts of Indo-China, Philippines, China, Taiwan, Korea and Japan. It is characterized by a warm, rainy summer monsoon and a cold, dry winter monsoon. The rain occurs in a concentrated belt that stretches east-west except in East China where it is tilted east-northeast over Korea and Japan. The seasonal rain is known as Meiyu in China, Jangma in Korea, and Bai-u in Japan, with the latter two resembling frontal rain.

The onset of the summer monsoon is marked by a period of premonsoonal rain over South China and Taiwan in early May. From May through August, the summer monsoon shifts through a series of dry and rainy phases as the rain belt moves northward, beginning over Indochina and the South China Sea (May), to the Yangtze River Basin and Japan (June) and finally to North China and Korea (July). When the monsoon ends in August, the rain belt moves back to South China.

Australia

Also known as the Indo-Australian Monsoon. The rainy season occurs from September to February and it is a major source of energy for the Hadley circulation during boreal winter. The Maritime Continent Monsoon and the Australian Monsoon may be considered to be the same system, the Indo-Australian Monsoon.

It is associated with the development of the Siberian High and the movement of the heating maxima from the Northern Hemisphere to the Southern Hemisphere. North-easterly winds flow down Southeast Asia, are turned north-westerly/westerly by Borneo topography towards Australia. This forms a cyclonic circulation vortex over Borneo, which together with descending cold surges of winter air from higher latitudes, cause significant weather phenomena in the region. Examples are the formation of a rare low-latitude tropical storm in 2001, Tropical Storm Vamei, and the devastating flood of Jakarta in 2007.

The onset of the monsoon over the Maritime Continent tends to follow the heating maxima down Vietnam and the Malay Peninsula (September), to Sumatra, Borneo and the Philippines (October), to Java, Sulawesi (November), Irian Jaya and Northern Australia (December, January). However, the monsoon is not a simple response to heating but a more complex interaction of topography, wind and sea, as demonstrated by its abrupt rather than gradual withdrawal from the region. The Australian monsoon (the "Wet") occurs in the southern summer when the monsoon trough develops over Northern Australia. Over three-quarters of annual rainfall in Northern Australia falls during this time.

Europe

The European Monsoon (more commonly known as the Return of the Westerlies) is the result of a resurgence of westerly winds from the Atlantic, where they become loaded with wind and rain. These Westerly winds are a common phenomenon during the European winter, but they ease as spring approaches in late March and through April and May. The winds pick up again in June, which is why this phenomenon is also referred to as "the return of the westerlies".

The rain usually arrives in two waves, at the beginning of June and again in mid to late June. The European monsoon is not a monsoon in the traditional sense in that it doesn't meet all the requirements to be classified as such. Instead the Return of the Westerlies is more regarded as a conveyor belt that delivers a series of low pressure centers to Western Europe where they create unsettled weather. These storms generally feature significantly lower than average temperatures, fierce rain or hail, thunder and strong winds. 

The Return of the Westerlies affects Europe's Northern Atlantic coastline, more precisely Ireland, Great Britain, the Benelux countries, Western Germany, Northern France and parts of Scandinavia.

Tuesday, 9 May 2017

10 Investment mantras

Below are his 10 investment mantras he strictly follows throughout his investment career and he advocates this golden mantras to all his followers

1. Create a fixed income outside the market for your livelihood: Never be dependent on the income from the stock market because it is volatile and unpredictable.

2. Be informative and read a lot: The market rewards you as per your perception. If you think investing is a gamble, then it is a gamble. If you think it is a business, then it is a business. Read a lot and be a maniac when it comes to reading; it will help you connect the dots. Warren Buffett once held up stacks of paper and said he read "500 pages like this every day. That's how knowledge builds up, like compound interest."

3. Invest a part of your savings, not the earnings, into stocks: So if you have decided to invest 25% of your savings in stocks, invest 12% to 15% as it is a risky business. Also you should only invest a certain amount based on your risk-taking capacity.

4. Don't trade and don't leverage: Trading is a 24-hour business. Don't invest from borrowed money. Don't trade just because you see someone making money by trading.

5. Invest only for long term. Minimum time frame is five years: Rome was not built in a day. It takes time for a story to mature. I always invest in small caps that go on to become mid to large caps.Whenever I bought a small cap, people discouraged me. No one liked the stock. For two years the company went nowhere; after that it gave multibagger returns.

6. Invest only with the best management and let them worry about the company: If you invest with the best management, you don't have to worry.

7. Your investment belongs to the market and the profits belong to you: As long as you are invested, the profits belong to the market. Don't spend just because the stock has risen because tomorrow stock prices can collapse.

8. Book profits periodically: Invest profits in buying a house which is very important.

9. Keep a balanced mind: Don't be optimistic in an up market, and don't be pessimistic in a down market. Be physically, financially and mentally sound.He explains how one should avoid regret. He says a stock can go up after you sell it. Don't regret. The stock market is a place of regret. You make money, you regret. You lose money, you regret. You make less money, you regret. That is why it is very important to keep a balanced mind.

10. Luck plays a crucial role. Do good karma: Be a good human being. The stock market is a mind game. If you are doing good karma, it will come back to you.


Construction Process Photos of RCCP

Construction Process Photos of RCCP

RCC discharged from a transit mixer truck to a dump truck prior to transportation.  Note the “damp gravel” appearance.
Also note the discharge taking place ABOVE the dump truck.

The “Paving Train”


10-ton roller in action, taking care of the compaction.



Roller compacting the fresh joint.



Surface Texture – Note the difference in texture appearance
Below is a photo of a typical surface texture before roller compaction.



So there you have it, RCC is a versatile concrete application capable of achieving high early strength and saving the project owner valuable resources.  Low cost continues to draw interest from the likes of engineers and owners, but ultimately, the performance has spoken for itself time and time again.

Speed of Construction


Moisture Content of RCCP

Moisture Content of RCCP


Moisture content of roller compacted concrete is a vital component that ultimately decides if the material will be a successful application or not.  An easy mental image to remember for properly proportioned RCC is a handful of damp gravel.  The two variables that moisture content can directly affect to is:

·         Adequate compaction
·         Long-term performance
Some things to consider regarding moisture content along the construction process are:
·         Verify the moisture content of the aggregates prior to mixing
·         Monitor the moisture content of RCC on the job site before paving begins
·         On the below moisture content curve, one ideally would like to be above the optimum moisture point to compensate for the loss of moisture during transportation and sitting time on the job site.  This is another reason why proper planning and preparation are so crucial to the construction process of roller compacted concrete.
There are several results that can be attained from either an RCC mix that is either too wet or too dry.  A mix with excessive moisture can lead to:
·         Poor compaction
·         Continous deformations during compaction
·         Adhesion to roller drum, causing more deformed surface textures
The results that can be possible due to a drier mix are:
·         Poor compaction
·         Segregation of the mixture, leading to a weaker, inconsistent pavement
·         Surface raveling, tears, and overall rough, open surface texture
Construction Practices
The process of applying RCCP from production to construction to compaction, is one that requires a timely schedule and minimal interruptions.  This cannot be said enough, following the basics can attribute to a successful application of RCCP.  To go along with the above stated, there are a few aspects of paving RCCP that one should keep in mind.

·         Production rates should match that of paving rates
·         Joint(fresh/cold) dimensions should be planned prior to construction
·         RCCP should be compacted no longer than 60 minutes after hydration of cement
The compaction times should be noted that these times can vary with variables such as ambient temperatures, wind speed, and retarding/accelerating admixtures.  The typical construction process of RCCP includes a typical ready mix concrete batch plant or RCC mixer(for more info see bottom), dump truck for transportation, and the standard “paving train” used for asphalt pavement.  Roller compacted concrete can be processed and compacted through a standard asphalt paver or high-density paver.  It should be noted that RCC should not and can not be applied through a conventional concrete paver or similar slip-form pavers.
roller-compacted-concrete-strong-dense.html
Construction Process Photos of RCCP