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Thursday, 21 December 2017

#Know The #Real-Story on #vitamin-D and #Health

*15 FACTS ABOUT VITAMIN D*

Vitamin D prevents Osteoporosis,
Depression,
Prostate cancer,
Breast cancer
and even effects -
Dabetes & Obesity..

Vitamin D is perhaps the single most *underrated nutrient* in the world of nutrition. 


That's probably because it's free....
Your body makes it when sunlight touches your skin !!

Drug companies can't sell you sunlight, so there's no promotion of its health benefits..

The truth is, most people don't know the real story on 




*vitamin D and health.*
 So here's an overview taken from an interview between Mike Adams and *Dr.Michael Holick*.

◆ 1. Vitamin D is *produced by your skin* in response to exposure to ultraviolet radiation *from natural sunlight*. 

◆ 2. The healing rays of natural sunlight (that generate vitamin D in your skin) *cannot penetrate glass*. 
So you don't generate vitamin D when sitting in your car or home. 

◆ 3. It is nearly impossible to get adequate amounts of vitamin D from your diet. *Sunlight exposure is the only reliable way* to generate vitamin D in your own body. 

◆ 4. A person would have to drink *ten tall glasses* of vitamin D fortified milk each day just to get minimum levels of vitamin D into their diet. 

◆ 5. The further you live from the equator, the longer exposure you need to the sun in order to generate vitamin D. Canada, the UK and most U.S. States are far from the equator. 

◆ 6. People with dark skin pigmentation may need 20 - 30 times as much exposure to sunlight as fair-skinned people to generate the same amount of vitamin D. 
That's why prostate cancer is epidemic among black men -- it's a simple, but widespread, sunlight deficiency. 

◆ 7. Sufficient levels of vitamin D are *crucial for calcium absorption* in your intestines. Without sufficient vitamin D, your body cannot absorb calcium, rendering calcium supplements useless. 

◆ 8. Chronic vitamin D *deficiency cannot be reversed overnight*: it takes months of vitamin D supplementation and sunlight exposure to rebuild the body's bones and nervous system. 

◆ 9. Even weak *sunscreens (SPF=8) block* your body's ability to generate vitamin D by 95%. This is how sunscreen products actually cause disease -by creating a critical vitamin deficiency in the body. 

◆ 10. It is impossible to generate too much vitamin D in your body from sunlight exposure: your body will self-regulate and only generate what it needs. 

◆ 11. If it hurts to press firmly on your sternum(chest/breast bone), you may be suffering from chronic vitamin D deficiency right now. 

◆ 12. Vitamin D is "activated" in your body by your *kidneys and liver* before it can be used. 

◆ 13. Having kidney disease or liver damage can greatly impair your body's ability to activate circulating vitamin D. 

◆ 14. The sunscreen industry doesn't want you to know that your body actually needs sunlight exposure because that realization would mean lower sales of sunscreen products. 

◆ 15. Even though vitamin D is one of the *most powerful healing chemicals in your body*, your body makes it absolutely free. No prescription required. 

~ Other powerful *antioxidants* with this ability include the 
super fruits like Pomegranates (POM Wonderful juice), 
Acai, Blueberries, etc. 

~ Diseases and conditions cause by vitamin D deficiency:

● Osteoporosis is commonly caused by a lack of vitamin D, which greatly impairs calcium absorption. 

● Sufficient vitamin D prevents 
prostate cancer, 
breast cancer, 
ovarian cancer,
depression, 
colon cancer and
schizophrenia..

● "Rickets" is the name of a bone-wasting disease caused by vitamin D deficiency. 

● Vitamin D deficiency may *exacerbate* type 2 diabetes and impair insulin production in the pancreas.
 
● Obesity impairs vitamin D utilization in the body, meaning obese people *need twice* as much vitamin D. 

● Vitamin D is used around the world to treat *Psoriasis*(a chronic skin disease).
 
● Vitamin D deficiency can cause ~
schizophrenia. 

● Seasonal Affective Disorder is caused by a melatonin imbalance initiated by lack of exposure to sunlight. 

● Chronic vitamin D deficiency is often misdiagnosed as *fibromyalgia* because its symptoms are so similar: *muscle weakness, aches and pains*. 

● Your risk of developing serious diseases like diabetes and cancer is *reduced 50% - 80%*  through simple, sensible exposure to natural *sunlight 2-3 times each week*. 

● Infants who receive vitamin D supplementation (2000 units daily) have an *80% reduced risk* of developing *type 1 diabetes* over the next twenty years. 

  
💥 Shocking Vitamin D deficiency statistics:

¶ 32% of doctors and med school students are vitamin D deficient. 
¶ 40% of the U.S. population is vitamin D deficient. 
¶ 42% of African American women of childbearing age are deficient in vitamin D. 
¶ 48% of young girls (9-11 years old) are vitamin D deficient. 
¶ Up to 60% of all hospital patients are vitamin D deficient.
¶ 76% of pregnant mothers are severely vitamin D deficient, causing widespread vitamin D deficiencies in their unborn children, which predisposes them to type 1 diabetes, arthritis, multiple sclerosis and schizophrenia later in life. 81% of the children born to these mothers were deficient. 
¶ Up to 80% of nursing home patients are
vitamin D deficient❗❗

Great Information with No cost

Tuesday, 19 December 2017

#द्रौपदी# का एक पति था- #युधिष्ठिर#

कौन कहता है कि द्रौपदी के पांच पति थे
*200 वर्षों से प्रचारित झूठ का खंडन*
*द्रौपदी का एक पति था- युधिष्ठिर*

द्रौपदी का असली (जन्म का) नाम कृष्णा था, वो अग्नि से प्रकट हुई थी और श्री कृष्ण के जैसे ही सांवले रंग की थी इसलिए कृष्णा नाम रखा गया था! द्रुपद नरेश की बेटी होने से द्रौपदी और पांचाल राज्य की राजकुमारी होने के चलती पांचाली के नाम से भी जानी जाती थी!
इस समय महाभारत-काव्य का जितना विस्तार है, उतना उसके मूल निमार्ण के समय नहीं था, इस तथ्य से आजकल के सभी विद्वान सहमत हैं. ऐसी अवस्था में यह मान लेना असंगत न होगा कि इस काव्य-ग्रंथ की मूल कथा में अनेक परिवर्तन हुए हैं. ये परिवर्तन क्यों हुए, यह हमारे लेख के विषय से बाहर की बात है. पर इन परिवर्तनों से आर्य-संस्कृति का रूप उज्ज्वल हुआ या मिलन, यह एक विचारणीय विषय है. 
_जर्मन के संस्कृत जानकार मैक्स मूलर को जब विलियम हंटर की कमेटी के कहने पर वैदिक धर्म के आर्य ग्रंथों को बिगाड़ने का जिम्मा सौंपा गया तो उसमे मनु स्मृति, रामायण, वेद के साथ साथ महाभारत के चरित्रों को बिगाड़ कर दिखाने का भी काम किया गया। किसी भी प्रकार से प्रेरणादायी पात्र - चरित्रों में विक्षेप करके उसमे झूठ का तड़का लगाकर महानायकों को चरित्रहीन, दुश्चरित्र, अधर्मी सिद्ध करना था, जिससे भारतीय जनमानस के हृदय में अपने ग्रंथो और महान पवित्र चरित्रों के प्रति घृणा और क्रोध का भाव जाग जाय और प्राचीन आर्य संस्कृति सभ्यता को निम्न दृष्टि से देखने लगें और फिर वैदिक धर्म से आस्था और विश्वास समाप्त हो जाय। लेकिन आर्य नागरिको के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि मूल महाभारत के अध्ययन बाद सबके सामने द्रोपदी के पाँच पति के दुष्प्रचार का सप्रमाण खण्डन किया जा रहा है। द्रोपदी के पवित्र चरित्र को बिगाड़ने वाले विधर्मी, पापी वो तथाकथित ब्राह्मण, पुजारी, पुरोहित भी हैं जिन्होंने महाभारत ग्रंथ का अध्ययन किये बिना अंग्रेजो के हर दुष्प्रचार और षड्यंत्रकारी चाल, धोखे को स्वीकार कर लिया और धर्म को चोट पहुंचाई।_
*अब ध्यानपूर्वक पढ़ें---*
*विवाह का विवाद क्यों पैदा हुआ था:--*
(१) अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था। यदि उससे विवाह हो जाता तो कोई परेशानी न होती। वह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता।
(२) परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी।
(३) अर्जुन ने भी इस विवाह से इन्कार कर दिया था। *"बड़े भाई से पहले छोटे का विवाह हो जाए यह तो पाप है। अधर्म है।
"* (भवान् निवेशय प्रथमं)
मा मा नरेन्द्र त्वमधर्मभाजंकृथा न धर्मोsयमशिष्टः (१९०-८)
(४) कुन्ती मां थी। यदि अर्जुन का विवाह भी हो जाता,भीम का तो पहले ही हिडम्बा से (हिडम्बा की ही चाहना के कारण) हो गया था। तो सारे देश में यह बात स्वतः प्रसिद्ध हो जाती कि निश्चय ही युधिष्ठिर में ऐसा कोई दोष है जिसके कारण उसका विवाह नहीं हो सकता।
(५) आप स्वयं निर्णय करें कुन्ती की इस सोच में क्या भूल है? वह माता है, अपने बच्चों का हित उससे अधिक कौन सोच सकता है? इसलिए माता कुन्ती चाहती थी और सारे पाण्डव भी यही चाहते थे कि विवाह युधिष्ठिर से हो जाए।
*प्रश्न:-क्या कोई ऐसा प्रमाण है जिसमें द्रौपदी ने अपने को केवल एक की पत्नी कहा हो या अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बताया हो?*
*उत्तर:-*
*(1)* द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई। उदास थी। भीम ने पूछा सब कुशल तो है? द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है?
आशोच्यत्वं कुतस्यस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः ।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि ।।-(विराट १८/१)

_द्रौपदी स्वयं को केवल युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है।_

*(2)* वह भीम से कहती है- जिसके बहुत से भाई, श्वसुर और पुत्र हों,जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो, ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी-


भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता ।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत् ।।-(२०-१३)


द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई हैं, बहुत से श्वसुर हैं, बहुत से पुत्र भी हैं,फिर भी वह दुःखी है। यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं, वह मैं दुःखी हूँ,पर होते तब ना ।
*(3)* और जब भीम ने द्रौपदी को,कीचक के किये का फल देने की प्रतिज्ञा कर ली और कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना दिया तब अन्तिम श्वास लेते कीचक को उसने कहा था, *"जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था,जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी।"-*


अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम् ।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम् ।।-(विराट २२-७९)

इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें? मारने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है, बोलने वाले की जीभ को कोई कैसे पकड़ सकता है?

*(4)* द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार जाने पर जब दुर्योधन ने उसे सभा में लाने को दूत भेजा तो द्रौपदी ने आने से इंकार कर दिया। उसने कहा जब राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने को दांव पर लगाकर हार चुका था तो वह हारा हुआ मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है? महात्मा विदुर ने भी यह सवाल भरी सभा में उठाया। *द्रौपदी ने भी सभा में ललकार कर यही प्रश्न पूछा था -क्या राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं को हारकर मुझे दांव पर लगा सकता था? सभा में सन्नाटा छा गया।* किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तब केवल भीष्म ने उत्तर देने या लीपा-पोती करने का प्रयत्न किया था और कहा था, *"जो मालिक नहीं वह पराया धन दांव पर नहीं लगा सकता परन्तु स्त्री को सदा अपने स्वामी के ही अधीन देखा जा सकता है।

"-* अस्वाभ्यशक्तः पणितुं परस्व ।स्त्रियाश्च भर्तुरवशतां समीक्ष्य ।-(२०७-४३)


*"ठीक है युधिष्ठिर पहले हारा है पर है तो द्रौपदी का पति और पति सदा पति रहता है, पत्नी का स्वामी रहता है।"*
यानि द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा हारे जाने का दबी जुबान में भीष्म समर्थन कर रहे हैं। यदि द्रौपदी पाँच की पत्नी होती तो वह ,बजाय चुप हो जाने के पूछती,जब मैं पाँच की पत्नी थी तो किसी एक को मुझे हारने का क्या अधिकार था? द्रौपदी न पूछती तो विदुर प्रश्न उठाते कि "पाँच की पत्नि को एक पति दाँव पर कैसे लगा सकता है? यह न्यायविरुद्ध है।"

_स्पष्ट है द्रौपदी ने या विदुर ने यह प्रश्न उठाया ही नहीं। यदि द्रौपदी पाँचों की पत्नी होती तो यह प्रश्न निश्चय ही उठाती।_
इसीलिए भीष्म ने कहा कि द्रौपदी को युधिष्ठिर ने हारा है। युधिष्ठिर इसका पति है। चाहे पहले स्वयं अपने को ही हारा हो, पर है तो इसका स्वामी ही। और नियम बता दिया - जो जिसका स्वामी है वही उसे किसी को दे सकता है,जिसका स्वामी नहीं उसे नहीं दे सकता।
*(5)* द्रौपदी कहती है- *"कौरवो ! मैं धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नि हूं।तथा उनके ही समान वर्ण वाली हू।आप बतावें मैं दासी हूँ या अदासी?आप जैसा कहेंगे,मैं वैसा करुंगी।"-*

तमिमांधर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णनाम् ।
ब्रूत दासीमदासीम् वा तत् करिष्यामि कौरवैः ।।-(६९-११-९०७)


द्रौपदी अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बता रही है।

(6)पाण्डव वनवास में थे दुर्योधन की बहन का पति सिंधुराज जयद्रथ उस वन में आ गया। उसने द्रौपदी को देखकर पूछा -तुम कुशल तो हो?द्रौपदी बोली सकुशल हूं।मेरे पति कुरु कुल-रत्न कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर भी सकुशल हैं।मैं और उनके चारों भाई तथा अन्य जिन लोगों के विषय में आप पूछना चाह रहे हैं, वे सब भी कुशल से हैं। राजकुमार ! यह पग धोने का जल है। इसे ग्रहण करो।यह आसन है, यहाँ विराजिए।-

कौरव्यः कुशली राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः
अहं च भ्राताश्चास्य यांश्चा न्यान् परिपृच्छसि ।-(१२-२६७-१६९४)
द्रौपदी भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव को अपना पति नहीं बताती,उन्हें पति का भाई बताती है।
और आगे चलकर तो यह एकदम स्पष्ट ही कर देती है। जब युधिष्ठिर की तरफ इशारा करके वह जयद्रथ को बताती है---

एतं कुरुश्रेष्ठतमम् वदन्ति युधिष्ठिरं धर्मसुतं पतिं मे ।-(२७०-७-१७०१)


"कुरू कुल के इन श्रेष्ठतम पुरुष को ही ,धर्मनन्दन युधिष्ठिर कहते हैं। ये मेरे पति हैं।"
क्या अब भी सन्देह की गुंजाइश है कि द्रौपदी का पति कौन था?
(7)कृष्ण संधि कराने गए थे। दुर्योधन को धिक्कारते हुए कहने लगे"-- दुर्योधन! तेरे सिवाय और ऐसा अधम कौन है जो बड़े भाई की पत्नी को सभा में लाकर उसके साथ वैसा अनुचित बर्ताव करे जैसा तूने किया। -

कश्चान्यो भ्रातृभार्यां वै विप्रकर्तुं तथार्हति ।
आनीय च सभां व्यक्तं यथोक्ता द्रौपदीम् त्वया ।।-(२८-८-२३८२)

कृष्ण भी द्रौपदी को दुर्योधन के बड़े भाई की पत्नी मानते हैं...
अब सत्य को ग्रहण करें और द्रौपदी के पवित्र चरित्र का सम्मान करें। 
अच्छा, अब कुंती की ‘पांचों भाई बांट खाओ’ वाली बात को लीजिए. हमारे विचार में कुंती के मुख से ये शब्द कभी नहीं निकले. यदि कुंती ने ऐसा कहा होता, तो धृष्टद्युम्न को इसका पता अवश्य होता, क्योंकि वह छिपकर अर्जुन और द्रौपदी के पीछे गया था और भार्गव कुम्भकार के यहां पहुंचने पर पांडवों, कुंती एवं द्रौदपी में जो कुछ वार्तालाप हुआ, वह सब सुनता रहा था. उसने वहां की समस्त बातें अपने पिता को जाकर बतलायी थीं.
धृष्टद्युम्न कहता है कि जब भीम और अर्जुन द्रौदपी के साथ कुम्भकार के घर में घुसे, तब कुंती अन्य तीन पांडवों के साथ वहां बैठी थी.

तस्यास्ततस्ताववभिवाद्य पादा-
वुक्ता च कृष्णा त्वभिवादयेति।
स्थितां च तत्रैव निवेद्य कृष्णां
भिक्षाप्रचाराय गता नराग्रयाः।।

अर्थात भीम और अर्जुन दोनों ने कुंती को प्रणाम करके द्रौपदी से कुंती को प्रणाम करने के लिए कहा. फिर द्रौदपी को कुंती के पास छोड़कर वे सब नरश्रेष्ठ भिक्षा के लिए निकल गये.

इस स्थल पर न तो द्रौपदी भिक्षा की कोई बात ही कही गयी है और न कुंती का यह कथन है कि पांचों भाई इसे भोगो. यदि ऐसी बात कही गयी होती, तो धृष्टद्युम्न अपने पिता को अवश्य सुनाता, क्योंकि उसने कुम्भकार के घर हुई पांडवों की रत्ती-रत्ती भर बात का द्रुपद के सामने निवेदन किया है. वे सब बातें आदिपर्व के 195 वें अध्याय में वर्णित हैं.

हमारी समझ में धृष्टद्युम्न का उपर्युक्त कथन द्रौपदी की पांच पति वाली बात की जड़ ही काट देता है. यह प्रसंग महाभारत के संस्कर्त्ता की कल्पना मात्र रह जाता है.

द्रौपदी का जब विवाह हो गया, तो वह रेशमी वस्र पहने कुए कुंती के सामने प्रणाम करके नम्र भाव से हाथ बांधकर खड़ी हो गयी. उस समय कुंती ने उसे जो आशीर्वाद दिया, वह मनन करने योग्य है-

रूपलक्षणसंपन्नां शीलाचार रसमन्विताम्।
द्रौपदीमवद्त प्रेम्णा पृथा।।
शीर्वचनैः स्नुषाम्।। 

जीवसूर्वोरसूर्भद्रे बहुसौख्यसमन्विता।
सुभगाभोगसम्पन्ना यज्ञपत्नी पतिव्रता।।

रूप लक्षण-सम्पन्ना, शील और आचार वाली द्रौपदी को प्रेमपूर्वक आशीर्वाद देती हुई कुंती कहती है कि भद्र, तुम वीरप्रसविनी, पतिव्रता और यज्ञपत्नी बनो.

यहां पतिव्रता और यज्ञपत्नी दो शब्द ध्यान देने योग्य हैं. एक पति ही जिसका व्रत है, उसे पतिव्रता और एक पति के साथ जो यज्ञ में भाग लेती है, उसे यज्ञपत्नी कहा जाता है. क्या द्रौपदी पांच पति वाली होकर इन दोनों विशेषणों की अधिकारिणी बन सकती है?

पांच पतियों वाली कथा बाद में जोड़ी गयी है, इसका सबसे बढ़िया प्रमाण विराटपर्व में मिलता है. भीम कीचक का वध करने के बाद कहता है-

अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम्।
शांतिं लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रिकण्टकम्।।

अर्थात आज मैं कीचक को मारकर अपने भाई की पत्नी के ऋण से मुक्त हो गया.

यहां भी भीम द्रौपदी को अपनी भार्या नहीं कहता. वह उसे अपने भाई (अर्जुन) की भार्या कहता है.

महाभारत के ऊपर लिखे उद्धरणों से हम तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि द्रौपदी के पांच पति वाली कथा बाद में किसी ने जोड़ी है. उसके जोड़ने में कुछ उद्देश्य रहा हो, पर वह हमें आर्य-मर्यादा के अनुकूल नहीं जान पड़ती.

साभार

Monday, 18 December 2017

#भारत के #प्रसिद्ध 20 #हनुमान-मंदिर#

●●ॐ●●
■■ भारत के प्रसिद्ध 20  हनुमान मंदिर :::-----
इस लेख में आप सब भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित 20  प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों की बारे में जानकारी पाएंगे। इनमे से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है कोई मंदीर अपनी प्राचीनता की लिये फेमस है तो कोई मंदीर अपनी भव्यता के लिए। जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए जैसे की इलाहबाद का हनुमान मंदीर जहां की उत्तर भारत की एक मात्र लेटे हुए हनूमान जी की प्रतिमा है। जबकि इंदौर के उलटे हनुमान मंदिर में भारत कि एक मात्र उलटे हनुमान कि प्रतिमा हैं। इसी तरह रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्री रुप में हनुमान प्रतिमा है। इन सबसे अलग गुजरात के जामनगर के बाल हनूमान मंदीर का नाम एक अनोखे रिकॉर्ड क़े कारण गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
आईये जाने ::---
■1. हनुमान मंदिर, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) -
इलाहाबाद किले से सटा यह मंदिर लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा वाला एक छोटा किन्तु प्राचीन मंदिर है। यह उत्तर  भारत का केवल एकमात्र मंदिर है जिसमें हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं। यहां पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा 20 फीट लम्बी है। जब वर्षा के दिनों में बाढ़ आती है और यह सारा स्थान जलमग्न हो जाता है, तब हनुमानजी की इस मूर्ति को कहीं ओर ले जाकर सुरक्षित रखा जाता है। उपयुक्त समय आने पर इस प्रतिमा को पुन: यहीं लाया जाता है।
■2. हनुमानगढ़ी, अयोध्या -
धर्म ग्रंथों के अनुसार अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। यहां का सबसे प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। इसमें 60 सीढिय़ां चढऩे के बाद श्री हनुमान जी का मंदिर आता है।
यह मंदिर काफी बड़ा है। मंदिर के चारों ओर निवास योग्य स्थान बने हैं, जिनमें साधु-संत रहते हैं। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नामक स्थान हैं। इस मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पहले स्वामी अभया रामदास जी ने की थी।

■3. सालासर बालाजी हनुमान मंदिर, सालासर (राजस्थान) -
हनुमानजी का यह मंदिर राजस्थान के चूरू जिले में है। गांव का नाम सालासर है, इसलिए सालासर वाले बालाजी के नाम यह मंदिर प्रसिद्ध है। हनुमानजी की यह प्रतिमा दाड़ी व मूंछ से सुशोभित है। यह मंदिर पर्याप्त बड़ा है। चारों ओर यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मनचाहा वरदान पाते हैं।
इस मंदिर के संस्थापक श्री मोहनदासजी बचपन से श्री हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे। माना जाता है कि हनुमान जी की यह प्रतिमा एक किसान को जमीन जोतते समय मिली थी, जिसे सालासर में सोने के सिंहासन पर स्थापित किया गया है। यहाँ हर साल भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख की पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है।
■4. हनुमान धारा, चित्रकूट, (उत्तर प्रदेश) :--
उत्तर प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है। सीतापुर से हनुमान धारा की दूरी तीन मील है। यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है।इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं।धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं। इस स्थान के बारे में एक कथा इस प्रकार प्रसिद्ध है - 
श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा- हे भगवन। मुझे कोई ऐसा स्थान बतलाइए, जहां लंका दहन से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिट सके। तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया।
■5. श्री संकटमोचन मंदिर, वाराणसी , (उत्तर प्रदेश) -
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है।इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।
■6. बेट द्वारका हनुमान दंडी मंदिर, (गुजरात)::---
बेट द्वारका से चार मील की दूरी पर मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं। अहिरावण ने भगवान श्रीराम लक्ष्मण को इसी स्थान पर छिपा कर रखा था।
जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था।
■7. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, मेहंदीपुर, (राजस्थान) ::---
राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ मेहंदीपुर नामक स्थान है। यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है।
इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। कहा जाता है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए परंतु चमत्कारी रूप से यह मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।
■8. डुल्या मारुति, पूना, (महाराष्ट्र) ::---
पूना के गणेशपेठ में स्थित यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। श्रीडुल्या मारुति का मंदिर संभवत: 350 वर्ष पुराना है। संपूर्ण मंदिर पत्थर का बना हुआ है, यह बहुत आकर्षक और भव्य है। मूल रूप से डुल्या मारुति की मूर्ति एक काले पत्थर पर अंकित की गई है। यह मूर्ति पांच फुट ऊंची तथा ढाई से तीन फुट चौड़ी अत्यंत भव्य एवं पश्चिम मुख है। हनुमानजी की इस मूर्ति की दाईं ओर श्रीगणेश भगवान की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति की स्थापना श्रीसमर्थ रामदास स्वामी ने की थी, ऐसी मान्यता है। सभा मंडप में द्वार के ठीक सामने छत से टंगा एक पीतल का घंटा है, इसके ऊपर शक संवत् 1700 अंकित है।
■9. श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर, (गुजरात) ::---
अहमदाबाद-भावनगर रेलवे लाइन पर स्थित बोटाद जंक्शन से सारंगपुर लगभग 12 मील दूर है। यहां एक प्रसिद्ध मारुति प्रतिमा है। महायोगिराज गोपालानंद स्वामी ने इस शिला मूर्ति की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1905 आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन की थी। जनश्रुति है कि प्रतिष्ठा के समय मूर्ति में श्री हनुमान जी का आवेश हुआ और यह हिलने लगी। तभी से इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर स्वामीनारायण सम्प्रदाय का एकमात्र हनुमान मंदिर है।

■10. यंत्रोद्धारक हनुमान मंदिर, हंपी, (कर्नाटक) ::---
बेल्लारी जिले के हंपी नामक नगर में एक हनुमान मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में प्रतिष्ठित हनुमानजी को यंत्रोद्धारक हनुमान कहा जाता है। विद्वानों के मतानुसार यही क्षेत्र प्राचीन किष्किंधा नगरी है। वाल्मीकि रामायण व रामचरित मानस में इस स्थान का वर्णन मिलता है। संभवतया इसी स्थान पर किसी समय वानरों का विशाल साम्राज्य स्थापित था। आज भी यहां अनेक गुफाएं हैं। इस मंदिर में श्रीराम नवमी के दिन से लेकर तीन दिन तक विशाल उत्सव मनाया जाता है।


■11. गिरजाबंध हनुमान मंदिर – रतनपुर – (छत्तीसगढ़) ::--
बिलासपुर से 25 कि. मी. दूर एक स्थान है रतनपुर। इसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह देवस्थान पूरे भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
■12. उलटे हनुमान का मंदिर, साँवरे, इंदौर (मध्यप्रदेश) ::---
भारत की धार्मिक नगरी उज्जैन से केवल 30 किमी दूर स्थित है यह धार्मिक स्थान जहाँ भगवान हनुमान जी की उल्टे रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर साँवरे नामक स्थान पर स्थापित है इस मंदिर को कई लोग रामायण काल के समय का बताते हैं। मंदिर में भगवान हनुमान की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति विराजमान है। सांवेर का हनुमान मंदिर हनुमान भक्तों का महत्वपूर्ण स्थान है यहाँ आकर भक्त भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। यह स्थान ऐसे भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया। 
उलटे हनुमान कथा :-
भगवान हनुमान के सभी मंदिरों में से अलग यह मंदिर अपनी विशेषता के कारण ही सभी का ध्यान अपनी ओर खींचता है। साँवेर के हनुमान जी के विषय में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि जब रामायण काल में भगवान श्री राम व रावण का युद्ध हो रहा था, तब अहिरावण ने एक चाल चली. उसने रूप बदल कर अपने को राम की सेना में शामिल कर लिया और जब रात्रि समय सभी लोग सो रहे थे,तब अहिरावण ने अपनी जादुई शक्ति से श्री राम एवं लक्ष्मण जी को मूर्छित कर उनका अपहरण कर लिया। वह उन्हें अपने साथ पाताल लोक में ले जाता है। जब वानर सेना को इस बात का पता चलता है तो चारों ओर हडकंप मच जाता है। सभी इस बात से विचलित हो जाते हैं। इस पर हनुमान जी भगवान राम व लक्ष्मण जी की खोज में पाताल लोक पहुँच जाते हैं और वहां पर अहिरावण से युद्ध करके उसका वध कर देते हैं तथा श्री राम एवं लक्ष्मण जी के प्राँणों की रक्षा करते हैं। उन्हें पाताल से निकाल कर सुरक्षित बाहर ले आते हैं। मान्यता है की यही वह स्थान था जहाँ से हनुमान जी पाताल लोक की और गए थे। उस समय हनुमान जी के पाँव आकाश की ओर तथा सर धरती की ओर था जिस कारण उनके उल्टे रूप की पूजा की जाती है।
■13. प्राचीन हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस, (नई दिल्ली) :--
यहां महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वंयम्भू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है। दिल्ली का ऐतिहासिक नाम इंद्रप्रस्थ शहर है, जो यमुना नदी के तट पर पांडवों द्वारा महाभारत-काल में बसाया गया था। तब पांडव इंद्रप्रस्थ पर और कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे। ये दोनों ही कुरु वंश से निकले थे। हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में द्वितीय भीम को हनुमान जी का भाई माना जाता है। दोनों ही वायु-पुत्र कहे जाते हैं। इंद्रप्रस्थ की स्थापना के समय पांडवों ने इस शहर में पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। ये मंदिर उन्हीं पांच में से एक है।
■14. श्री बाल हनुमान मंदिर, जामनगर, (गुजरात) :-
सन् 1540 में जामनगर की स्थापना के साथ ही स्थापित यह हनुमान मंदिर, गुजरात के गौरव का प्रतीक है। यहाँ पर सन् 1964 से “श्री राम धुनी” का जाप लगातार चलता आ रहा है, जिस कारण इस मंदिर का नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।




■15. महावीर हनुमान मंदिर, पटना, (बिहार) ::---
पटना जंक्शन के ठीक सामने महावीर मंदिर के नाम से श्री हनुमान जी का मंदिर है। उत्तर भारत में माँ वैष्णों देवी मंदिर के बाद यहाँ ही सबसे ज्यादा चढ़ावा आता है। इस मंदिर के अन्तर्गत महावीर कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य हॉस्पिटल, महावीर आरोग्य हॉस्पिटल तथा अन्य बहुत से अनाथालय एवं अस्पताल चल रहे हैं। यहाँ श्री हनुमान जी संकटमोचन रूप में विराजमान हैं।

■16. श्री पंचमुख आंजनेयर हनुमान, ( तमिलनाडू) ::---
तमिलनाडू के कुम्बकोनम नामक स्थान पर श्री पंचमुखी आंजनेयर स्वामी जी (श्री हनुमान जी) का बहुत ही मनभावन मठ है। यहाँ पर श्री हनुमान जी की “पंचमुख रूप” में विग्रह स्थापित है, जो अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय है।
यहाँ पर प्रचलित कथाओं के अनुसार जब अहिरावण तथा उसके भाई महिरावण ने श्री राम जी को लक्ष्मण सहित अगवा कर लिया था, तब प्रभु श्री राम को ढूँढ़ने के लिए हनुमान जी ने पंचमुख रूप धारण कर इसी स्थान से अपनी खोज प्रारम्भ की थी। और फिर इसी रूप में उन्होंने उन अहिरावण और महिरावण का वध भी किया था। यहाँ पर हनुमान जी के पंचमुख रूप के दर्शन करने से मनुष्य सारे दुस्तर संकटों एवं बंधनों से मुक्त हो जाता है।
■17. श्री काले  हनुमान, ( जयपुर -राजस्थान ) ::---
जयपुर में काले हनुमान जी की एक मूर्ति चांदी की टकसाल के पास और दूसरी जलमहल के नजदीक स्थित है। आमेर के राजा जयसिंह ने शहर के मुख्य सांगानेरी गेट के भीतर रक्षक के रूप में काले हनुमानजी की पूर्वमुखी प्रतिमा स्थापित करवाई थी।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता
- हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूरी होने पर अपने गुरु सूर्य भगवान से गुरु दक्षिणा लेने की बात कही।
- सूर्यदेव ने कहा, मेरा पुत्र शनिदेव मेरी मेरी बात नहीं मानता है। यदि तुम उसे मेरे पास ला दो तो मैं उसे गुरुदक्षिणा समझूंगा।
- हनुमानजी जब शनिदेव को लेने गए तो शनि ने क्रोधित होकर हनुमानजी पर कुदृष्टि डाली, जिससे उनका रंग काला हो गया।
- इसके बाद भी हनुमान जी शनिदेव को पकड़कर सूर्यदेव के पास ले आए।
- गुरुभक्ति से प्रभावित होकर शनिदेव ने हनुमानजी को वचन दिया कि जो व्यक्ति शनिवार को हनुमान जी की उपासना करेगा उस पर मेरी वक्रदृष्टि का कोई असर नहीं पड़ेगा।
■18 . पञ्चमुखी  हनुमान जी का मन्दिर ( कानपुर  ) ::---

कानपुर में पंचमुखी हनुमान जी का मंद‌िर है। कहते हैं यहां हनुमान का लवकुश से युद्ध हुआ था‌। हनुमान जी ने जब यह जान ल‌िया क‌ि लवकुश श्रीरामचन्द्र जी के पुत्र हैं तब स्वयं ही युद्ध में हार गए। माता सीता ने जब हनुमान जी को बंधन में देखा तो बंधन मुक्तकर उन्हें लड्डूओं का भोग लगाया। कहते हैं तभी से यहां हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाने की परंपरा है और इसी से हनुमान जी भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी मुरादें पूरी कर देते हैं।
■19  . उलटे  हनुमान जी का मन्दिर ( इंदौर म प्र   ) ::---
पूरी दुन‌िया में अनोखा इंदौर में स्‍थ‌ित हनुमान जी का यह मंद‌िर है। यहां हनुमान जी का स‌िर नीचे और पैर ऊपर है इसल‌िए यह उलटे हनुमान जी कहलाते हैं। मान्यता है क‌ि अह‌िरावण से भगवान राम और लक्ष्मण की रक्षा के ल‌िए हनुमान जी ने यहीं से पाताल में प्रवेश क‌िया था। इसल‌िए जमीन की ओर इनका स‌िर है। इस मंद‌िर की मान्यता है क‌ि तीन या पांच मंगलवार यहां हनुमान जी के दर्शन करने से भक्त की मनोकामना पूरी होती है। यहां हनुमान जी को लंगोटा चढ़ाने की भी मान्यता है।
■2 0  . जाम सावली के चमत्कारी  हनुमान  मन्दिर ( सोसर  छिंदवाड़ा म प्र   ) ::---
चमत्कारिक श्री हनुमान मंदिर ,जाम सांवली श्रृदधा और आस्था का केन्द्र हैं , "स्वयं भू " श्री. हनुमान जी लेटी हुई अवस्था में विराजमान हैं । स्वयंभू " श्री. हनुमान जी की मूर्ति कब और किसने स्थापित की हैं , इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नही हैं । राजस्व अभिलेख में १०० वर्ष पूर्व मंदिर के इतिहास में पीपल के वृक्ष के निचे श्री महावीर हनुमान का उल्लेख मिलता हैं । बुजुर्ग ग्रामीण जनों की आस्था अनुसार स्वयंभू श्री. हनुमान जी की मूर्ति पूर्व में सीधी अवस्था में खड़ी हुई थी , कुछ लोगों के द्वारा मूर्ति के नीचे गुप्त धन छिपा होने के संदेह के कारण मूर्ति को हटाने की कोशिश की तब श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्वतः लेट गई और २०-२० घोड़ो और बैलों से खींचने पर भी मूर्ति को हिला नहीं सके । 
पौराणिक कथाओ एवं मान्यताओ के अनुसार रामायण काल में भगवान श्री राम और रावण के युद्ध में मेघनाथ ने जब लक्ष्मण जी को शक्ति बाण से मूर्छित किया तब संजीवनी बूटी से भरा सुमेरु पर्वत हिमालय से लेकर जा रहे थे तब जाम सांवली स्थित पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम हेतू रुकने की भी जन कथाएं प्रचलन हैं , एक अन्य कथा भी प्रचलित है कि , महाभारत काल में इसी स्थान पर श्री. हनुमानजी ने भीम का गर्वहरण किया था । 
चमत्कारिक श्री हनुमान मंदिर चमत्कारों के कारण श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र हैं , जहां आने वाले श्रद्धालुओं और भक्तों जनों की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं , और असाध्य रोग कैंसर ,लकवा,मानसिक रोगी , प्रेत बाधा से ग्रसित रोगी चमत्कारिक श्री हनुमान जी की कृपा से कुछ ही समय में ठीक हो जाते हैं, ऐसी लोगों की आस्था हैं ।
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