शायद यह बहुत कम लोगो को ये पता होगा कि देवताओ ओर देत्यो ने मिल कर जो सागर मंथन किया था ओर उस मे से जो सामग्री निकली थी उस का बंटवारा उज्जैन में जिस स्थान पर किया गया था उसे रत्नसागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है सागर मंथन से क्रमशः ये सामग्री निकली थी
1.विष 2. बहूत सा धन (रत्न मोती) 3.माता लक्ष्मी 4.धनुष 5.मणि 6.शंख 7.कामधेनु गाय 8.घोडा
9.हाथी 10.मदिरा 11.कल्प वृक्ष 12.अप्सराये 13 भगवान चंद्रमा .14 भगवान धनवंतरि अपने हाथो मे अमृत के कलश को लेकर निकले
क्षीप्रे हर
म्हारा उज्जैन
स्वागतम्-2016
जब भगवान शिव कि तपस्या कामदेव ने भंग कि तब भगवान कि द्रष्टि मात्र से कामदेव भस्म हो गये तब उन कि पत्नी रती ने भगवान शिव से कामदेव को जीवीत करने कि प्रार्थना कि तब भगवान ने उन्हे क्षीप्रा स्नान ओर शिवलिंग के पूजा के लिये कहा तब रति देवी ने वेसा ही किया जिस से कि उन्हे कामदेव पुनः पती रूप मे मिले जिस स्थान पर रती ने प्रतीदिन क्षीप्रा मे स्नान कर जिस शिवलिंग का पूजन किया वह उज्जैन मे आज भी मनकामनेश्वर मंदिर से जाना जाता है
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म्हारा उज्जैन
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विश्व में सात सागर का अस्तित्व है संभव नही है कि सामान्य व्यक्ति सातो सागर मे स्नान कर सके इसलिये प्राचीन काल मे ऋषियो ने उज्जैन में ही सात सागरो कि स्थापना कि जो कि आज भी उज्जैन मे विध्यमान है
1.रूद्र सागर 2. विष्णु सागर 3. क्षीर सागर 4. पुरूषोत्तम सागर 5. गोवर्धन सागर 6. रत्नाकर सागर 7. पुष्कर सागर
जिस मे कि स्नान करने से विश्व के सातो सागरो मे स्नान करने कि फल कि प्राप्ति होती है
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म्हारा उज्जैन
स्वागतम् -2016
उज्जैन में आज भी राजतंत्र ही है
प्राचीन काल में कोई भी राजा जो उज्जैन का शासक हुआ करता था वह अपना महल उज्जैन कि सीमा के बाहर ही बनवाता था यदि कोई राजा उज्जैन में सो जाता तो वह मर जाता था क्यो कि एक राज्य मे दो राजा केसे संभव है यहा के राजा भगवान महाकाल माने जाते है ओर रानी माता हरसिद्धि (जो बावन शक्ति पीठ मे से एकहै ) यहा के सेनापति कालभैरव (प्रत्यक्ष रूप से मदिरा का पान करते है)
जब जब भगवान महाकाल पालकी मे सवार हो कर निकलते है तब तब उज्जैन के निवासी भगवान महाकाल का स्वागत उसी प्रकार करते है जेसे महाराजा का करते है।
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म्हारा उज्जैन
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माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए एक वट वृक्ष का रोपण कर उस के नीचे बेठ कर घोर तपस्या की जिस से कि भगवान शिव उन्हे पति रूप मे प्राप्त हूये जिस वृक्ष के नीचे तपस्या की थी उसे एक समय मुगल हमले मे काट दिया गया था पर वह एक ही रात्री मे पुनः हरा भरा हो गया तब मुगल सेनिको ने उसे फिर काट कर उस के ऊपर विशालकाय लोहे के तवे जडवा दिये पर पुनः एक ही रात्री मे वह वृक्ष तवो को फाड कर पुर्व स्वरूप मे आ गया तब मुगल सेना डर कर वहा से भाग खड़ी हूई वह वृक्ष उज्जैन में आज भी विध्यमान है जिसे सिद्धवट मंदिर से जाना जाता है
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म्हारा उज्जैन
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भगवान राम वनवास के दिनो मे उज्जैन में आये थे ओर उन्होंने भगवान गणेश कि स्थापना कि ओर राम जी ओर सीता जी ने मीलकर उन का पुजन किया जो आज भी उज्जैन में चिन्तामण गणेश के रूप मे जाने जाते है ईसी मंदिर परीसर मे एक कुंआ भी है जीसे लक्ष्मण जी ने माता सीता कि प्यास बुझाने के लिए एक ही बाण मे निर्मित किया था
क्षीप्रे हर
म्हारा उज्जैन
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