कौन कहता है कि द्रौपदी के पांच पति थे
*200 वर्षों से प्रचारित झूठ का खंडन*
*द्रौपदी का एक पति था- युधिष्ठिर*
द्रौपदी का असली (जन्म का) नाम कृष्णा था, वो अग्नि से प्रकट हुई थी और श्री कृष्ण के जैसे ही सांवले रंग की थी इसलिए कृष्णा नाम रखा गया था! द्रुपद नरेश की बेटी होने से द्रौपदी और पांचाल राज्य की राजकुमारी होने के चलती पांचाली के नाम से भी जानी जाती थी!
इस समय महाभारत-काव्य का जितना विस्तार है, उतना उसके मूल निमार्ण के समय नहीं था, इस तथ्य से आजकल के सभी विद्वान सहमत हैं. ऐसी अवस्था में यह मान लेना असंगत न होगा कि इस काव्य-ग्रंथ की मूल कथा में अनेक परिवर्तन हुए हैं. ये परिवर्तन क्यों हुए, यह हमारे लेख के विषय से बाहर की बात है. पर इन परिवर्तनों से आर्य-संस्कृति का रूप उज्ज्वल हुआ या मिलन, यह एक विचारणीय विषय है.
_जर्मन के संस्कृत जानकार मैक्स मूलर को जब विलियम हंटर की कमेटी के कहने पर वैदिक धर्म के आर्य ग्रंथों को बिगाड़ने का जिम्मा सौंपा गया तो उसमे मनु स्मृति, रामायण, वेद के साथ साथ महाभारत के चरित्रों को बिगाड़ कर दिखाने का भी काम किया गया। किसी भी प्रकार से प्रेरणादायी पात्र - चरित्रों में विक्षेप करके उसमे झूठ का तड़का लगाकर महानायकों को चरित्रहीन, दुश्चरित्र, अधर्मी सिद्ध करना था, जिससे भारतीय जनमानस के हृदय में अपने ग्रंथो और महान पवित्र चरित्रों के प्रति घृणा और क्रोध का भाव जाग जाय और प्राचीन आर्य संस्कृति सभ्यता को निम्न दृष्टि से देखने लगें और फिर वैदिक धर्म से आस्था और विश्वास समाप्त हो जाय। लेकिन आर्य नागरिको के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि मूल महाभारत के अध्ययन बाद सबके सामने द्रोपदी के पाँच पति के दुष्प्रचार का सप्रमाण खण्डन किया जा रहा है। द्रोपदी के पवित्र चरित्र को बिगाड़ने वाले विधर्मी, पापी वो तथाकथित ब्राह्मण, पुजारी, पुरोहित भी हैं जिन्होंने महाभारत ग्रंथ का अध्ययन किये बिना अंग्रेजो के हर दुष्प्रचार और षड्यंत्रकारी चाल, धोखे को स्वीकार कर लिया और धर्म को चोट पहुंचाई।_
*अब ध्यानपूर्वक पढ़ें---*
*विवाह का विवाद क्यों पैदा हुआ था:--*
(१) अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था। यदि उससे विवाह हो जाता तो कोई परेशानी न होती। वह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता।
(२) परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी।
(३) अर्जुन ने भी इस विवाह से इन्कार कर दिया था। *"बड़े भाई से पहले छोटे का विवाह हो जाए यह तो पाप है। अधर्म है।
"* (भवान् निवेशय प्रथमं)
मा मा नरेन्द्र त्वमधर्मभाजंकृथा न धर्मोsयमशिष्टः (१९०-८)
(४) कुन्ती मां थी। यदि अर्जुन का विवाह भी हो जाता,भीम का तो पहले ही हिडम्बा से (हिडम्बा की ही चाहना के कारण) हो गया था। तो सारे देश में यह बात स्वतः प्रसिद्ध हो जाती कि निश्चय ही युधिष्ठिर में ऐसा कोई दोष है जिसके कारण उसका विवाह नहीं हो सकता।
(५) आप स्वयं निर्णय करें कुन्ती की इस सोच में क्या भूल है? वह माता है, अपने बच्चों का हित उससे अधिक कौन सोच सकता है? इसलिए माता कुन्ती चाहती थी और सारे पाण्डव भी यही चाहते थे कि विवाह युधिष्ठिर से हो जाए।
*प्रश्न:-क्या कोई ऐसा प्रमाण है जिसमें द्रौपदी ने अपने को केवल एक की पत्नी कहा हो या अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बताया हो?*
*उत्तर:-*
*(1)* द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई। उदास थी। भीम ने पूछा सब कुशल तो है? द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है?
आशोच्यत्वं कुतस्यस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः ।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि ।।-(विराट १८/१)
_द्रौपदी स्वयं को केवल युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है।_
*(2)* वह भीम से कहती है- जिसके बहुत से भाई, श्वसुर और पुत्र हों,जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो, ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी-
भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता ।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत् ।।-(२०-१३)
द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई हैं, बहुत से श्वसुर हैं, बहुत से पुत्र भी हैं,फिर भी वह दुःखी है। यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं, वह मैं दुःखी हूँ,पर होते तब ना ।
*(3)* और जब भीम ने द्रौपदी को,कीचक के किये का फल देने की प्रतिज्ञा कर ली और कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना दिया तब अन्तिम श्वास लेते कीचक को उसने कहा था, *"जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था,जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी।"-*
अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम् ।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम् ।।-(विराट २२-७९)
इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें? मारने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है, बोलने वाले की जीभ को कोई कैसे पकड़ सकता है?
*(4)* द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार जाने पर जब दुर्योधन ने उसे सभा में लाने को दूत भेजा तो द्रौपदी ने आने से इंकार कर दिया। उसने कहा जब राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने को दांव पर लगाकर हार चुका था तो वह हारा हुआ मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है? महात्मा विदुर ने भी यह सवाल भरी सभा में उठाया। *द्रौपदी ने भी सभा में ललकार कर यही प्रश्न पूछा था -क्या राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं को हारकर मुझे दांव पर लगा सकता था? सभा में सन्नाटा छा गया।* किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तब केवल भीष्म ने उत्तर देने या लीपा-पोती करने का प्रयत्न किया था और कहा था, *"जो मालिक नहीं वह पराया धन दांव पर नहीं लगा सकता परन्तु स्त्री को सदा अपने स्वामी के ही अधीन देखा जा सकता है।
"-* अस्वाभ्यशक्तः पणितुं परस्व ।स्त्रियाश्च भर्तुरवशतां समीक्ष्य ।-(२०७-४३)
*"ठीक है युधिष्ठिर पहले हारा है पर है तो द्रौपदी का पति और पति सदा पति रहता है, पत्नी का स्वामी रहता है।"*
यानि द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा हारे जाने का दबी जुबान में भीष्म समर्थन कर रहे हैं। यदि द्रौपदी पाँच की पत्नी होती तो वह ,बजाय चुप हो जाने के पूछती,जब मैं पाँच की पत्नी थी तो किसी एक को मुझे हारने का क्या अधिकार था? द्रौपदी न पूछती तो विदुर प्रश्न उठाते कि "पाँच की पत्नि को एक पति दाँव पर कैसे लगा सकता है? यह न्यायविरुद्ध है।"
_स्पष्ट है द्रौपदी ने या विदुर ने यह प्रश्न उठाया ही नहीं। यदि द्रौपदी पाँचों की पत्नी होती तो यह प्रश्न निश्चय ही उठाती।_
इसीलिए भीष्म ने कहा कि द्रौपदी को युधिष्ठिर ने हारा है। युधिष्ठिर इसका पति है। चाहे पहले स्वयं अपने को ही हारा हो, पर है तो इसका स्वामी ही। और नियम बता दिया - जो जिसका स्वामी है वही उसे किसी को दे सकता है,जिसका स्वामी नहीं उसे नहीं दे सकता।
*(5)* द्रौपदी कहती है- *"कौरवो ! मैं धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नि हूं।तथा उनके ही समान वर्ण वाली हू।आप बतावें मैं दासी हूँ या अदासी?आप जैसा कहेंगे,मैं वैसा करुंगी।"-*
तमिमांधर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णनाम् ।
ब्रूत दासीमदासीम् वा तत् करिष्यामि कौरवैः ।।-(६९-११-९०७)
द्रौपदी अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बता रही है।
(6)पाण्डव वनवास में थे दुर्योधन की बहन का पति सिंधुराज जयद्रथ उस वन में आ गया। उसने द्रौपदी को देखकर पूछा -तुम कुशल तो हो?द्रौपदी बोली सकुशल हूं।मेरे पति कुरु कुल-रत्न कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर भी सकुशल हैं।मैं और उनके चारों भाई तथा अन्य जिन लोगों के विषय में आप पूछना चाह रहे हैं, वे सब भी कुशल से हैं। राजकुमार ! यह पग धोने का जल है। इसे ग्रहण करो।यह आसन है, यहाँ विराजिए।-
कौरव्यः कुशली राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः
अहं च भ्राताश्चास्य यांश्चा न्यान् परिपृच्छसि ।-(१२-२६७-१६९४)
द्रौपदी भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव को अपना पति नहीं बताती,उन्हें पति का भाई बताती है।
और आगे चलकर तो यह एकदम स्पष्ट ही कर देती है। जब युधिष्ठिर की तरफ इशारा करके वह जयद्रथ को बताती है---
एतं कुरुश्रेष्ठतमम् वदन्ति युधिष्ठिरं धर्मसुतं पतिं मे ।-(२७०-७-१७०१)
"कुरू कुल के इन श्रेष्ठतम पुरुष को ही ,धर्मनन्दन युधिष्ठिर कहते हैं। ये मेरे पति हैं।"
क्या अब भी सन्देह की गुंजाइश है कि द्रौपदी का पति कौन था?
(7)कृष्ण संधि कराने गए थे। दुर्योधन को धिक्कारते हुए कहने लगे"-- दुर्योधन! तेरे सिवाय और ऐसा अधम कौन है जो बड़े भाई की पत्नी को सभा में लाकर उसके साथ वैसा अनुचित बर्ताव करे जैसा तूने किया। -
कश्चान्यो भ्रातृभार्यां वै विप्रकर्तुं तथार्हति ।
आनीय च सभां व्यक्तं यथोक्ता द्रौपदीम् त्वया ।।-(२८-८-२३८२)
कृष्ण भी द्रौपदी को दुर्योधन के बड़े भाई की पत्नी मानते हैं...
अब सत्य को ग्रहण करें और द्रौपदी के पवित्र चरित्र का सम्मान करें।
अच्छा, अब कुंती की ‘पांचों भाई बांट खाओ’ वाली बात को लीजिए. हमारे विचार में कुंती के मुख से ये शब्द कभी नहीं निकले. यदि कुंती ने ऐसा कहा होता, तो धृष्टद्युम्न को इसका पता अवश्य होता, क्योंकि वह छिपकर अर्जुन और द्रौपदी के पीछे गया था और भार्गव कुम्भकार के यहां पहुंचने पर पांडवों, कुंती एवं द्रौदपी में जो कुछ वार्तालाप हुआ, वह सब सुनता रहा था. उसने वहां की समस्त बातें अपने पिता को जाकर बतलायी थीं.
धृष्टद्युम्न कहता है कि जब भीम और अर्जुन द्रौदपी के साथ कुम्भकार के घर में घुसे, तब कुंती अन्य तीन पांडवों के साथ वहां बैठी थी.
तस्यास्ततस्ताववभिवाद्य पादा-
वुक्ता च कृष्णा त्वभिवादयेति।
स्थितां च तत्रैव निवेद्य कृष्णां
भिक्षाप्रचाराय गता नराग्रयाः।।
अर्थात भीम और अर्जुन दोनों ने कुंती को प्रणाम करके द्रौपदी से कुंती को प्रणाम करने के लिए कहा. फिर द्रौदपी को कुंती के पास छोड़कर वे सब नरश्रेष्ठ भिक्षा के लिए निकल गये.
इस स्थल पर न तो द्रौपदी भिक्षा की कोई बात ही कही गयी है और न कुंती का यह कथन है कि पांचों भाई इसे भोगो. यदि ऐसी बात कही गयी होती, तो धृष्टद्युम्न अपने पिता को अवश्य सुनाता, क्योंकि उसने कुम्भकार के घर हुई पांडवों की रत्ती-रत्ती भर बात का द्रुपद के सामने निवेदन किया है. वे सब बातें आदिपर्व के 195 वें अध्याय में वर्णित हैं.
हमारी समझ में धृष्टद्युम्न का उपर्युक्त कथन द्रौपदी की पांच पति वाली बात की जड़ ही काट देता है. यह प्रसंग महाभारत के संस्कर्त्ता की कल्पना मात्र रह जाता है.
द्रौपदी का जब विवाह हो गया, तो वह रेशमी वस्र पहने कुए कुंती के सामने प्रणाम करके नम्र भाव से हाथ बांधकर खड़ी हो गयी. उस समय कुंती ने उसे जो आशीर्वाद दिया, वह मनन करने योग्य है-
रूपलक्षणसंपन्नां शीलाचार रसमन्विताम्।
द्रौपदीमवद्त प्रेम्णा पृथा।।
शीर्वचनैः स्नुषाम्।।
जीवसूर्वोरसूर्भद्रे बहुसौख्यसमन्विता।
सुभगाभोगसम्पन्ना यज्ञपत्नी पतिव्रता।।
रूप लक्षण-सम्पन्ना, शील और आचार वाली द्रौपदी को प्रेमपूर्वक आशीर्वाद देती हुई कुंती कहती है कि भद्र, तुम वीरप्रसविनी, पतिव्रता और यज्ञपत्नी बनो.
यहां पतिव्रता और यज्ञपत्नी दो शब्द ध्यान देने योग्य हैं. एक पति ही जिसका व्रत है, उसे पतिव्रता और एक पति के साथ जो यज्ञ में भाग लेती है, उसे यज्ञपत्नी कहा जाता है. क्या द्रौपदी पांच पति वाली होकर इन दोनों विशेषणों की अधिकारिणी बन सकती है?
पांच पतियों वाली कथा बाद में जोड़ी गयी है, इसका सबसे बढ़िया प्रमाण विराटपर्व में मिलता है. भीम कीचक का वध करने के बाद कहता है-
अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम्।
शांतिं लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रिकण्टकम्।।
अर्थात आज मैं कीचक को मारकर अपने भाई की पत्नी के ऋण से मुक्त हो गया.
यहां भी भीम द्रौपदी को अपनी भार्या नहीं कहता. वह उसे अपने भाई (अर्जुन) की भार्या कहता है.
महाभारत के ऊपर लिखे उद्धरणों से हम तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि द्रौपदी के पांच पति वाली कथा बाद में किसी ने जोड़ी है. उसके जोड़ने में कुछ उद्देश्य रहा हो, पर वह हमें आर्य-मर्यादा के अनुकूल नहीं जान पड़ती.
साभार
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