पृथ्वी से 40 करोड़ किलोमीटर की अधिकतम संभव दूरी पर घूम रहा है मंगल ग्रह.मंगल ग्रह पर पानी की संभावनाओं को ले कर हुई खोजों से जो तथ्य सामने आए हैं, बताते हैं कि मंगल पर पानी है. लेकिन क्या वहां जीवन वास्तव में संभव है.
सितंबर, 2015 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के प्लैनेटरी साइंस डायरैक्टर जिम ग्रीन ने दावा किया कि मंगल अब तक अनुमानों के विपरीत सूखा और बंजर ग्रह नहीं है. इस पर पानी है जो अभी इस की सतह पर बहने की स्थिति में है. इस खोज से मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं के बारे में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं क्योंकि तरल पानी की मौजूदगी इस संभावना को भी जगा देती है कि वहां माइक्रोब्स भी मौजूद हो सकते हैं. साथ ही सतह के नज़दीक पानी के स्त्रोतों की पहचान से भविष्य में मंगल ग्रह पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी 'वहां रहना' आसान हो सकता है. शोधकर्ता लंबे समय से इस बात के कयास लगाते रहे हैं कि क्या अब भी तरल पानी मंगल की सतह पर बहता होगा या नहीं .नासा का नया डाटा दर्शाता है कि मंगल ग्रह की सतह पर बहता हुआ पानी मौजूद है. तरल पानी की मौजूदगी बताती है कि मंगल ग्रह अभी भी भौगोलिक रूप से सक्रिय है. नई खोज से मंगल ग्रह पर जीवन के होने की संभावना भी बढ़ गई है.
मंगल पर पानी के ये सुबूत नासा के अंतरिक्ष यान ‘मार्स रीकानिसेंस औरबिटर’ से लिए गए चित्रों व प्रेक्षणों में मिले हैं. इन चित्रों में मंगल की एक सतह पर ऊपर से नीचे की ओर बहती हुई धाराओं के प्रमाण मिले हैं जो करीब 5 मीटर चौड़ी और 100 मीटर तक लंबी हैं. ये जलधाराएं कम तापमान या फिर सर्दियों में गायब हो जाती हैं और तापमान बढ़ने पर यानी गरमियों में एक बार फिर प्रकट हो जाती हैं.
यदि हम खारा जल बनने के थर्मोडायनॉमिक्स के अवलोकन को और भू-क्षेत्रीय जीवों को जोड़ कर देखें तो क्या मंगल के खारे जल में जीवों के लिए एक संभावना तलाशना मुमकिन है।' मंगल ठंडा है, अत्यधिक सूखा है और इस ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में 200 गुना कम वायुमंडीय दबाव है। इसकी सतह पर शुद्ध जल या तो जम सकता है या मिनटों में उबल सकता है।
हालांकि, 2008 में नासा के फिनीक्स लैंडर ने धुव्रीय मिट्टी के नमूनों में परक्लोरेट नमक की पहचान की थी । परक्लोरेट पृथ्वी पर दुर्लभ है लेकिन ये वायुमंडल से नमी सोखने के लिए और जल के जमाव के तापमान को कम करने के लिए जाना जाता है। परक्लोरेट की व्यापक रूप से मौजूदगी तरल जल को मंगल पर संभव बनाती है।
मंगल पर पानी मिलने के बारे में एक विस्तृत शोधपत्र ‘नैचुरल जियोसाइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है. यह शोधपत्र नेपाली मूल के वैज्ञानिक लुजेंद्र ओझा और उन के सहयोगी वैज्ञानिकों ने लिखा है. इस खोज के बारे में एरिजोना विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक अल्फ्रेड मैकइवेन ने कहा कि यह खोज साबित करती है कि मंगल ग्रह के वातावरण में पानी की अहम भूमिका है यानी कभी इस ग्रह पर पानी अवश्य था. यह भी हो सकता है कि मंगल की अंदरूनी संरचनाओं में पानी अब भी मौजूद हो.
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अनुसार लुजेंद्र ओझा ने जो खोज की है, उस के तहत मंगल पर काली धारियों के रूप में पानी के बहाव की जानकारी मिली है. ये धारियां 4 साल पहले 2011 में अप्रैलमई के दौरान नजर आईं और गरमी आतेआते काफी स्पष्ट हो गईं. हालांकि अगस्त के दौरान ये धारियां गायब हो गईं. प्रोफैसर अल्फ्रेड एस मैकइवेन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने खोज की है कि वह असल में मंगल पर पानीयुक्त नमकीन अणुओं यानी साल्ट क्लोरेट की उपस्थिति का संकेत है. साल्ट क्लोरेट के बहाव से बनी काली धारियों की तसवीरें नासा ने अपनी वैबसाइट पर प्रदर्शित की हैं.
तसवीरों के अध्ययन से यह भी साफ होता है कि मंगल ग्रह पर नमक, पानी के जमाव और पानी के वाष्पीकृत होने के संकेत हैं. ये तीनों चीजें किसी सतह का तापमान बदल सकती हैं. इस का अर्थ यह हुआ कि ऐसे स्थान पर पानी लंबे समय तक मौजूद रह सकता है.
खास बात यह है कि मंगल ग्रह पर पानी का जमाव तापमान शून्य डिग्री सैल्सियस ही है, लेकिन वहां काफी कम दबाव है. इस वजह से पानी 10 डिग्री तापमान पर ही वाष्पित हो जाता है, जबकि पृथ्वी पर पानी को भाप बनने के लिए 100 डिग्री सैल्सियस तापमान की जरूरत होती है. हो सकता है कि मंगल का पानी इसी तरह वाष्पित हो कर अंतरिक्ष में चला गया हो.
उल्लेखनीय है कि अतीत में पहले भी कई बार मंगल पर पानी मौजूद होने की बात कही जा चुकी है. सब से पहले वर्ष 1877 में जब इटली के साइंटिस्ट गैलीलियो गैलिली ने खुद की बनाई दूरबीन से मंगल की सतह को कुछ करीब से देखा तो वहां नहरों (कैनाल) जैसी संरचनाएं देख कर वे चौंक गए थे. इस जानकारी के बाद यह दावा भी किया गया कि करोड़ोंअरबों वर्ष पहले मंगल पर जीवन रहा होगा.
चुंबकीय क्षेत्र के कारण सूर्य से बची है पृथ्वी
नासा ने कहा कि इस खोज से लाल ग्रह के इतिहास, उद्विकास और जीवन की संभावनाओं की पूरी पहचान की जा सकती है। नासा ने यह भी बताया कि पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण यहां मंगल जैसे हालात नहीं बन पाये। अगर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र नहीं होता तो यहां भी मंगल के जैसे हालात होते। पृथ्वी के चारों ओर मौजूद चुंबकीय क्षेत्र मैग्नेटोस्फेयर के कारण यह ग्रह सौर ज्वालाओं के कहर से बचा हुआ है। पृथ्वी पर जीवन के लिए इतनी महत्वपूर्ण इस परत का लगातार क्षय हो रहा है। पिछले 200 साल में इस परत में 15 प्रतिशत का क्षय हो चुका है।
कहा जाता है कि मंगल पर करीब साढ़े 4 अरब साल पहले आज की तुलना में साढ़े 6 गुना अधिक पानी था. पर मंगल का पृथ्वी जैसा चुंबकीय क्षेत्र नहीं था और उस की सतह पर काफी कम दबाव था, इसलिए वहां का ज्यादातर पानी भाप बन कर उड़ गया और उसे मंगल का वायुमंडल रोक नहीं पाया. वैसे मंगल को इस के धु्रवों पर जमी बर्फ और क्रेटर्स (गड्ढों) में कैद रहस्यों के कारण हमेशा एक जैव संभावना वाला या कहें जीवन की संभावना वाला ग्रह माना जाता रहा है.
शून्य से 130 डिग्री नीचे के औसत तापमान वाले मंगल के धु्रवों पर जमी शुष्क बर्फ, पानी के बहाव के प्रमाण, गरमी और लावा का प्रवाह जैसे संकेतों को हमेशा जीवन की निशानी समझा गया, पर सवाल तो यह है कि क्या इन सुबूतों के आधार पर वहां कोई जीवन वास्तव में संभव है? इस गुत्थी को सुलझाने की जितनी कोशिश होती है, रहस्य उतना ही गहराता दिखता है.
इस से पहले भी कई बार मंगल ग्रह को जीवन से जोड़ने की कोशिश हुई है. कई बार अनजाने में, सुबूतों के बगैर कल्पना के आधार पर, तो कई मौके ऐसे भी आए, जब मंगल तक पहुंचे उपग्रहों और स्पेस टैलीस्कोपों से ली गई तसवीरों के आधार पर वहां पानी की मौजूदगी बताई गई.
‘मंगल पर तरल अवस्था में जल की मौजूदगी, भले ही यह बेहद खारा पानी हो… यह इस बात की संभावना पैदा करता है कि , यदि मंगल पर जीवन है तो हमें यह बताने के लिए एक रास्ता मिला है कि यह जीवन वहां कैसे बना रहा.’ उन्होंने कहा कि मंगल ग्रह पर भविष्य में और मिशन भेजे जाने की पहले से ही योजना है लेकिन अब इस नयी खोज ने इस सवाल को ठोस आकार दे दिया है कि क्या इस ग्रह पर जीवन है और हम इस सवाल का जवाब दे सकते हैं.’ मंगल पर जल की मौजूदगी से मंगल पर मानव अभियान भेजना आसान हो जाएगा जिसे वर्ष 2030 तक भेजने की नासा की योजना है. ग्रुंसफेल्ड ने कहा, ‘सतह पर जिंदा रहने के लिए वहां संसाधन हैं.’ उन्होंने कहा कि पानी महत्वपूर्ण है लेकिन ग्रह पर अन्य महत्वपूर्ण तत्व भी हैं जैसे कि नाइट्रोजन जिसका इस्तेमाल ग्रीनहाउस में पौधो को उगाने के लिए किया जा सकता है.
मंगल पर पानी की मौजूदगी की यह घोषणा ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘द मार्सियन’ के रिलीज होने से पूर्व हुई है. इस फिल्म में मैट डेमोन मंगल ग्रह पर करीब एक महीने बिना भोजन के मरने के लिए छोड़ दिए जाने के बाद खुद को जिंदा रखते हैं. वैज्ञानिकों का लंबे समय से मानना रहा है कि कभी लाल ग्रह पर पानी बहता था और इसी से वहां घाटियां और गहरे दर्रे बने लेकिन तीन अरब साल पहले जलवायु में आए बड़े बदलावों के चलते मंगल का सारा रूप बदल गया.
verry nice article............
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