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Sunday, 16 July 2017

सीएफ़एल (CFL) की कमियाँ संभावित एवं कुप्रभावों व दुर्घटनाओं से संबंधित विश्वस्नीय जानकारी

ये कहानी
कनाडा के रहने वाले स्मिथ की है,जिनका पैर अब काटा जाना है. इन्हें CFL बल्ब का इस्तेमाल या यूँ कहें कि इस्तेमाल में की गई लापरवाही बहुत भारी पड़ी. हम सब जानते हैं कि CFL बल्ब कितनी बिजली बचाते हैं, लेकिन ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते कि इन बल्बों में पारा पाया जाता है, जो कि शरीर में चले जाने पर बहुत ही घातक साबित होता है.
स्मिथ ने ऐसे ही एक बल्ब के ठन्डे होने का इन्तज़ार नहीं किया और उसे होल्डर से निकालकर बदलने की कोशिश करते हुए उसे ज़मीन पर गिरा डाला. ज़मीन पर गिरते ही बल्ब टूट गया और काँच के टुकड़े बिखर गए.
स्मिथ नंगे पैर थे और अंधेरे में उनका पैर काँच के एक टुकड़े पर पड़ गया और बल्ब में उपस्थित पारा घाव के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर गया. उन्हें 2 महीने ICU में रखा गया और अब उन्हें अपने पैर को खो देने का डर है.
बिजली की कमी और इसकी बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए बिजली की बचत के लिये सीएफ़एल बल्ब और ट्यूब लगाना समय की आवश्यकता है इसलिये इन्हें लगाएं ज़रूर पर इसके साथ ही इसके ख़तरों से जागरूक रहते हुए अपने स्वयं के और अपने परिजनों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना न भूलें। बिजली बचत करने वाले इन सीएफ़एल बल्बों के परिचय, उपयोगिता, संभावित कुप्रभावों व दुर्घटनाओं से संबंधित विश्वस्नीय जानकारी और इंगलैंड के पर्यावरण, आहार और ग्रामीण विभाग ने इनको काम में लेते समय वांछित सावधानियों का जो चेतावनी पत्र जारी किया है, उन पर आधारित पूरा लेख आगे पढ़िये।
1. प्रस्तावना –
पिछले कुछ वर्षों से हमें यह बताया जा रहा है कि सीएफ़एल बल्ब और ट्यूब लगाने से बिजली की बचत होती है तथा इनकी उम्र भी ज़्यादा होती है। इसलिये मँहगा होते हुए भी ऐसे बल्बों का प्रचलन हमारे देश भारत में बढ़ता जा रहा है। विदेशों में यह प्रचलन काफ़ी पहले ही बढ़ चुका था और इस कारण इसके कुप्रभाव भी पहले वहाँ पर सामने आये हैं। विदेशों में तो ऐसे बल्बों के ख़राब होने के बाद सुरक्षित पुनर्चक्रण की पुख़्ता व्यवस्था है लेकिन हमारे देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण हमारे यहाँ कुप्रभावों की संभावना और भी ज्यादा है जिसे देखते हुए हमें सजग रहने की आवश्यकता है।
सीएफ़एल की तकनीक –
सीएफ़एल के दो मुख्य भाग होते हैं – इलेक्ट्रोनिक बेलास्ट और गैस भरी ट्यूब। बेलास्ट में एक रेक्टिफ़ायर वाला सर्किट बोर्ड, एक फ़िल्टर केपेसिटर और दो स्विचिंग ट्रांज़िस्टर होते हैं। गैस भरी ट्यूब में फ़ॉस्फ़ोर का मिश्रण होता है जो बेलास्ट से मिलने वाली उच्च आवृति की बिजली से चमक कर प्रकाश देते हैं। फ़ॉस्फ़ोरों की डिजाइन के आधार पर सीएफ़एल सफ़ेद, पीले या अन्य रंग का प्रकाश देते हैं। फ़ॉस्फ़ोर रेयर अर्थ कम्पाउंड (rare earth compounds) हैं। इनका उपयोग सीएफ़एल के अलावा रेडार, केथोड रे ट्यूब व प्लाज़्मा डिस्प्ले स्क्रीन, नियोन साइन, आदि में होता है।
परम्परागत बल्ब बनाम सीएफ़एल –
परम्परागत बल्बों का निर्धारित जीवनकाल लगभग 750 से 1000 घंटे का होता है जबकि सीएफ़एल बल्बों व ट्यूबों का 6000 से 15000 घंटे और साथ ही समान प्रकाश देने के लिये परम्परागत बल्बों की तुलना में सीएफ़एल बिजली की लगभग एक तिहाई खपत ही करते हैं। विकिपीडिया पर उपलब्ध विवरण के अनुसार सन् 2010 में लगभग 50-70% बाज़ार परम्परागत बल्बों का था और अगर इसे शून्य कर पूरे विश्व में केवल सीएफ़एल ही काम में ली जावे तो 409 टैरावॉटऑवर्स {1 टैरावॉटऑवर (TWh) =109किलोवॉटऑवर (KWh)} बिजली की बचत होने का अनुमान है जो विश्व की कुल खपत का 2.5% मात्र है। इस परिस्थिति में पूरे विश्व के कार्बन उत्सर्जन में 23 करोड़ टन की कमी आने का अनुमान है जो नीदरलैंड तथा पुर्तगाल के वर्तमान कार्बन उत्सर्जन के बराबर है। तात्पर्य यह है कि सीएफ़एल लगाने के पीछे ऊर्जा व पर्यावरण संरक्षण का जो मुख्य तर्क दिया जाता है वह समग्र रूप से इसका प्रभाव देखने पर बहुत व़जनी नहीं है।
सीएफ़एल की कमियाँ -
सीएफ़एल की मुख्य कमियाँ निम्न प्रकार से हैं -
1) सीएफ़एल बल्बों व ट्यूबों का उपयोगी जीवनकाल बिजली की गुणवत्ता में कमी, जैसे निर्धारित वोल्टेज में कमी या आधिक्य व इसमें अचानक परिवर्तन, चालू व बंद करने की बारम्बारता (frequency of cycling on and off), कमरे के तापमान, इसे लगाने की दिशा, झटका लगने या गिरने, उत्पादकीय दोष, आदि से उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होता है और सामान्यतः मानक जीवनकाल वास्तविकता में नहीं मिल पाता है।उदाहरण के लिये अगर सीएफ़एल को पाँच मिनट तक ही जला कर बंद करने का चक्र रखा जाना है तो सीएफ़एल व परम्परागत बल्बों के जीवनकाल समान ही रहने की संभावना है। अमेरिकन स्टार रेटिंग के दिशा निर्देशों में यह उल्लेख है कि अगर किसी कमरे में लगे सीएफ़एल का उपयोग 15 मिनट से कम के लिये नहीं करना है तो ऐसी स्थिति में उसे बंद करने के बजाय जलता रखा जाना श्रेयस्कर है। (क्योंकि सीएफ़एल को चालू करने में बेलास्ट अतिरिक्त बिजली की खपत करता है और बार बार बंद करने से इसकी उम्र भी घटती है) 
2) सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब ज्यों ज्यों पुराने होते जाते हैं ये कम प्रकाश देने लगते हैं और जीवनकाल के अंत तक यह कमी लगभग 25% तक हो जाती है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के एक परीक्षण में कुल परीक्षित बल्बों में से 25% निर्धारित जीवनकाल का 40% जीवनकाल बीतने के बाद उन पर लिखे वॉट का प्रकाश नहीं दे सके।
3) सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब परम्परागत बल्बों की तुलना में काफ़ी कम उष्मा (heat) उत्सर्जित करते हैं इसलिये गर्म प्रदेशों या गर्मी के दिनों में तो लाभप्रद हैं लेकिन ठंडे प्रदेशों या सर्दी के दिनों में भवन को गर्म करने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा चाहिये जिससे ऊर्जा की वास्तविक बचत कम हो जाती है। कनाडा के विनिपेग शहर में इस दृष्टिकोण से की गई गणना के अनुसार ऊर्जा की वास्तविक बचत 75% के स्थान पर 17% ही रह जाती है यह एक अध्ययन में सामने आया है।
4) परम्परागत बल्ब स्विच चालू करते ही पूरा प्रकाश देना शुरू कर देते हैं जबकि सीएफ़एल बल्ब व ट्यूबस्विच चालू करने के लगभग एक सैकंड बाद चालू होते हैं और कई मॉडल पूरा प्रकाश देने में कुछ समय लेते हैं। तापमान कम होने पर यह समय और बढ़ जाता है।
5) परम्परागत बल्ब के प्रकाश को मद्धिमक (dimmer) लगा कर आवश्यकतानुसार मद्धिम (dim) किया जा सकता है जबकि सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब में मद्धिमन (dimming) संभव नहीं है।(कुछ विशेष इसी प्रयोजन के मॉडलों के अलावा)
6) सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब से अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जिनसे इन्फ्रारेड रिमोट कंट्रोल नियंत्रित इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की कार्यदक्षता व रंजकयुक्त (having piments & dyes) कपड़ों व चित्रकारियों (paintings) के रंग प्रभावित हो सकते हैं। परम्परागत बल्ब के प्रकाश में ऐसी किरणें नहीं निकलती हैं।
सीएफ़एल का जन स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कुप्रभाव –
1) यूरोपियन कमिशन की वैज्ञानिक समिति ने सन् 2008 में यह पाया कि सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणों की निकटता विद्यमान चर्म रोगों को बढ़ा सकती है और आँखों के पर्दे (ratina) को हानि पहुँचा सकती है। यदि दोहरे काँच की सीएफ़एल काम में ली जाय तो यह ख़तरा नहीं रहता है। दोहरे काँच की सीएफ़एल विकसित देशों में बनने लग गई हैं लेकिन भारत में यह प्रचलन आने में समय लग सकता है।
2) हर सीएफ़एल बल्ब व ट्यूब में लगभग 3-5 मिलिग्राम पारा होता है जो कम मात्रा में होने पर भी ज़हर है। सीएफ़एल के ख़राब होने पर हर कहीं फेंक देने पर यह भूमि और भूमिगत जल को प्रदूषित कर देता है जो जन स्वास्थ्य के लिये भारी ख़तरा पैदा करता है। जैविक प्रक्रिया के दौरान यह पारा मिथाइल मरकरी (methylmercury) बन जाता है जो पानी में घुलनशील है और मछलियों के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है। इसका मुख्य कुप्रभाव गर्भवती स्त्रियों पर होता है और परिणाम जन्मजात विकलांगता व न्यूरोविकारके रूप में सामने आते हैं। अमेरिका की नेशनल साइंस एकेडमी के एक अनुमान के अनुसार हर साल 60,000 से अधिक ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं जिनकी विकलांगता का कारण मिथाइल मरकरी होता है। भारत में ऐसे कोई अध्ययन हुए हों ऐसी जानकारी नहीं है। विकसित देशों ने कम पारे वाले बल्ब ही उत्पादित करने के मानक निर्धारित कर दिये हैं और बल्ब बनाने व बेचने वालों के लिये इनके खराब होने के बाद वापस एकत्रित कर सुरक्षित पुनर्चक्रण अनिवार्य कर दिया है। वहाँ ऐसे बल्बों की कीमत में पुनर्चक्रण की कीमत भी शामिल की जाती है। भारत में यह प्रचलन आने में कितना समय लगेगा कोई नहीं बता सकता है।
3) ऊर्जा बचाने वाले ये सीएफएल बल्ब अगर देर रात तक जलाए जाते हैं तो इनसे स्तन कैंसर होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है क्योंकि इससे शरीर में मेलाटोनीन नाम के हारमोन का बनना काफी हद तक प्रभावित होता है। यह निष्कर्ष इजरायल के हफीफा विश्वविद्यालय के जीवविज्ञान के प्रोफेसर अब्राहम हाइम का है जो ‘क्रोनोबॉयलॉजी इंटरनेशनल’ नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
4) यदि सीएफ़एल बल्ब या ट्यूब घर में टूट जावे और उसका सुरक्षित निस्तारण करने की जानकारी नहीं हो तो इसके गंभीर दुश्परिणाम हो सकते हैं। ऐसी ही एक दुर्घटना में पीड़ित के पाँव की स्थिति गंभीर हो गई थी क्योंकि उसने फूटे बल्ब के काँच पर पाँव रख दिया और पारे का ज़हर सीधा फैल गया ।
अधिकांश विकसित देशों ने इस संबंध में सार्वजनिक दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं पर भारत में अभी इसका अभाव है।
CFL के सम्बन्ध में
पारा ही एक ख़तरा नहीं है, कई और भी मसले हैं, लेकिन उनके बारे में फ़िर कभी चर्चा करेंगे. आज जानना ज़रूरी है
कि CFL के टूट जाने पर क्या करें...
१) कभी भी तुरन्त CFL ना बदलें. उसके ठन्डे होने का इन्तज़ार करें.
२) CFL टूट जाने पर तुरन्त कमरे से निकल जाएँ. ध्यान रखें कि पैर काँच के टुकड़े पर ना पड़ जाए.
३) पंखे एसी इत्यादि बन्द कर दें जिससे पारा कहीं भी फैल ना सके.
४) कम से कम १५-२० मिनट बाद कमरे में प्रवेश करके टूटे हुए काँच को साफ़ करें. पंखा बन्द रखें और मुँह को ढाँक कर रखें. दस्ताने पहनें और कार्डबोर्ड की मदद से काँच समेटें. झाड़ू का इस्तेमाल ना करें. क्यूँकि इससे पारे के फ़ैलने का डर रहता है. काँच के बारीक कण टेप की मदद से चिपका कर साफ़ करें.
५) कचरा फेंकने के बाद साबुन से हाथ धोना ना भूलें.
६) यदि किसी कारणवश चोट लग जाए तो तुरन्त चिकित्सक को दिखाएँ और उसे चोट के बारे में सारी जानकारी दें. सीसे और आर्सेनिक से भी कहीं अधिक ज़हरीला और घातक पारा होता है. इसलिए CFL का प्रयोग करते समय बहुत सावधानी रखें.
इस जानकारी को अधिक से अधिक शेयर करें तथा अपने परिचितों को भी बताएँ, ताकि कोई अन्य ऐसी दुर्घटना की चपेट में ना आए.
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_Forwarded as received_.

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