समय हो तो पढ़े शायद किसी की मदद हो जाये ..!
आज के दौर की एक सच्ची कहानी ....!
एक मित्र की वाल से ....!
कल रात एक ऐसा वाक्या हुआ जिसने मेरी जिंदगी के कई पहलुओ को छू लिया ।मैं न चाहते हुए भी वो सबकुछ सोचने पर बार बार बाध्य हो जाता हु।
करीब 7 बजे होंगे , शाम को मोबाइल की घंटी बजी ,सर्दी ज्यादा होने के नाते मैं जल्दी घर आ गया था । श्रीमती जी लखनऊ में है तो चाय अपने हाथों से ही बनानी पड़ी । वहीँ चाय का कप हाथ में था । मोबाइल उठाया तो उधर से रोने की आवाज़ ,मैं तो घबड़ा सा गया फिर आवाज़ क्ल़ी यर हुई तो मैंने शांत कराया और पूछा क़ि भाभी जी आखिर हुआ क्या,उधर से आवाज़ आई आप कहाँ है ? और कितने देर में आप चाणक्यपुरी आ सकते है ,मैंने कहा आप परेशानी बताइये और भाई साहब कहा है ,माता जी किधर है आखिर हुआ क्या ?लेकिन उधर से केवल एक रट आप आ जाइए। मैंने आश्वाशन दिया की कम से कम एक घंटा लगेगा।
मैं अपनी चाय ख़त्म कर टाई की नॉट को टाइट किया, जूते पहने और निकल गया। जैसे तैसे पूरी घबराहट में पहुंचा ,देखा तो भाई साहब (हमारे मित्र श्रीमान चंद्रा साहब -(बदला हुआ नाम )जो तीस हज़ारी न्यायालय में जज है सामने बैठे हुए है । भाभी जी रोना चीखना कर रही है 13 साल का बेटा रोहन भी परेशान है 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।
मैंने भाई साहब से पूछा क्या बात है ? भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे ,फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये तलाक के पेपर । ये कोर्ट से तयार कराके लाये है । मुझे तलाक देना चाहते है । मैंने पूछा ये कैसे हो सकता है । इतनी अच्छी फैमिली है 2 बच्चे है। सब कुछ सेट्ल है। प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है लेकिन भाभी जी का रोना और भाई साहब की खामोसी कुछ और ही कह रही थी। मैं सवाल कर रहा हु लेकिन भाई साहव कोई जवाब नहीं दे रहे।
मैंने बच्चों से पूछा दादी किधर है । बच्चों ने कहा पापा 3 दिन पहले नॉएडा के बृद्धाश्रम में शिफ्ट कर आए है।
मैंने घर के नौकर से कहा मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ । कुछ देर में चाय आई।भाई साहब को बहुत कोशिश की पिलाने की लेकिन वो नहीं पिए और कुछ ही देर में वो एक मासूम बच्चे की तरह फुट फुट कर रोने लगे । बोले मैं 3 दिन से कुछ नहीं खाया हु । मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगो के हवाले करके आया हु।
पिछले डेढ़ साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबते हो गई क़ि अम्बिका (भाभीजी) ने कसम खा ली क़ि मै माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती । हम लोगो से ज्यादा बेहतर ये ओल्ड ऐज हाउस वाले रखते है। ना अम्बिका उनसे बात करती थी ना मेरे बच्चे । माँ मेरे कोर्ट से आने के बाद खूब रोती थी। नौकर तक भी अपने मन से ब्यवहार करते थे।
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया-" बेटा तु मुझे ओल्ड ऐज हाउस में शिफ्ट कर दे।" बहुत कोशिश की पुरे फॅमिली को समझाने की लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुह बात नहीं की।
जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी। दूसरे के घरो में काम करके मुझे पढ़ाया ,मुझे इस काबिल बनाया क़ि आज मैं अपनी सोच के मुताबिक जी सकू। लोग बताते है माँ कभी दुसरो के घरो में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थी। उस माँ को मैं ओल्ड ऐज हाउस में शिफ्ट करके आया हूँ
पिछले 3 दिनों से मैं अपनी माँ के एक- एक दुःख को याद करके तड़प रहा हु ,जिसको उसने केवल मेरे लिए उठाया । मुझे आज भी याद है जब मैं10th के परीक्षा में अपीयर होने वाला था ,माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती । एक बार माँ को बहुत फीवर हुआ मैं स्कूल से आया था उसका शरीर गर्म था, तप रहा था । मैं जब माँ के गले लगा तो लगने नहीं दी फिर भी मैं उनको पकड़ लिया , मैंने कहा माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है। लोगो से उधार मांग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया । मुझे ट्यूशन तक नहीं पढाने देती क़ि कही मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए। कहते कहते रोने लगे और बोले
"जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो ,अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे। जिनके शरीर के टुकड़े है अगर हम उनको ऐसे लोगो के हवाले कर आये जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके किसी चीज़ को नहीं जानते ।जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो मैं किसी और के लिए क्या कर सकता हूँ ?
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और माँ इतनी बोझ लग रही है तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हु। जब मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे । इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हु और सारी प्रॉपर्टी इन लोगो के हवाले करके उस ओल्ड ऐज हाउस में रहूँगा । कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हु। और अगर इतना करके माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है तो एक दिन मुझे भी जाना ही पडेगा । माँ के साथ रहते रहते आदत भी हो जायेगी। माँ की तरह तकलीफ तो नहीं होगी। जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे। बात करते करते रात के 12:30 हो गए।
भाभी जी के चेहरे को देखा उनके भाव भी प्रायश्चित और ग्लानि से भरे हुए थे। मैंने ड्राईवर को बोला अभी हम लोग नोएडा जाएंगे भाभी जी और बच्चे समेत हम लोग नोएडा पहुचे ।
बहुत रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला भाई साहब उस गटेकीपर के पैर पकड़ लिए, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हु।
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब ? भाई साहब ने कहा मैं जज हूँ ।उस चौकीदार ने कहा जहा सारे सबूुत सामने है तब तो आप अपने माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये औरो के साथ क्या न्याय करते होंगे ? साहब। इतना कहकर हमलोगो को वही रोककर वह अंदर चला गया ।अंदर से एक महिला आई जो वार्डेन थी । उसने भी उस समय किसी फॉर्मेल्टीस को करने से मना कर दिया । उसने इतने कातर शब्दों में कहा 2 बजे रात को आप लोग ले जाके कही मार दे तो मैं यीशू को क्या जबाब दूंगी ? मैंने सिस्टर को कहा आप विश्वास करिये । ये लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे है। अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गई ।कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हु। केवल एक फ़ोटो जिसमे पूरी फॅमिली है और वो भी माँ जी के बगल में जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है। मुझे देखा तो उनको लगा शायद बात खुले नहीं और संकोच करने लगी लेकिन जब मैंने कहा हमलोग आप को लेने आये है तो पूरी फॅमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी। आसपास के कमरो में और भी बुजुर्ग थे सबलोग जग कर आ गए और उनकी भी आँखे नम थी।
कुछ समय के बाद चलने की तयारी हुई।पुरे आश्रम के लोग बाहर तक आये। किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगो को छोड़ पाये ।सबलोग इस आशा में देख रहे थे कि शायद उनको भी कोई लेने आएगा।
रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शांत रहे लेकिन भाई साहब और माता जी एक दूसरे की भावनाओ को अपने पुराने रिश्ते पर बैठा रहे थे।
घर आते आते करीब 3:45 हो गया ।
सुबह तो शायद इस दुनिया में सबके लिए आई लेकिन भाई साहब और उनके परिवार का सबेरा सबसे अलग था। माँ जी के कमरे में हम सबने काफी समय गुजारा। भाभी जी भी अपने ख़ुशी की चाबी कहाँ है ये समझ गई थी। भाई साहब के चेहरे पर ख़ुशी की मुस्कान आने लगी । मुझे भी बिदा लेने का समय हो गया था क्योकि अकादमी पहुच कर क्लास लेनी थी सो मैं चल दिया लेकिन रास्ते भर वो सारी बाते और दृश्य घूमते रहे और कल उन लोगो ने मेरे लिए डिनर का प्रोग्राम रखा था, जाना नही हो पाया,लेकिन माँ जी से बहुत सारी बाते हुई (मोबाइल से)
माता-पिता का सम्मान करना सीखे।वो केवल माँ-पिता है उनको मरने से पहले ना मारे।
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