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Sunday, 27 March 2016

पान का बीड़ा खाकर चुनते हैं पार्टनर, मेले में मिलते हैं दिल

पान खिलाकर करते हैं प्रेम का इजहार, लड़कियों को लेकर गायब हो जाते हैं युवा
भगोरिया एक उत्सव है जो होली का ही एक रूप है। यह मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ, खरगोन आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया उत्सव देशभर में प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए बाहर से भारी संख्या में सैलानी यहां आते हैं। इनमें कई विदेशी पर्यटक भी शामिल है। धुलेंडी से पहले के सात दिन भगोरिया हाट बाजार लगते हैं। जहां लोक संस्कृति अपने पूर्ण रूप में उजागर होती है। यही इस उत्सव की खासियत भी है। भगोरिया ऐसा उत्सव है, जिसमें सम्मिलित होने के लिए अंचल का आदिवासी देश के किसी भी कोने में क्यों न हो, अपने गांव लौट आता है।यह भील और भिलाला आदिवासियों की प्रेम और शादी से जुड़ा पारंपरिक मेला है।
भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है।
ये होली से एक हफ्ते पहले शुरू होता है। होली से पहले शुरू होकर मेला होली के दिन ही समाप्त हो जाता है। आदिवासी साल भर इस मेले का इंतज़ार करते हैं। इस वर्ष लोक संस्कृति के पर्व भगोरिया की शुरुआत 16 मार्च से हुई । इस दौरान झाबुआ जिले में 36 तो आलीराजपुर जिले में 24 स्थानों पर मेले लगे। जहां आदिवासियों की अल्हड़ता और सांस्कृतिक विरासत की विपुलता का सम्मिलित समारोह नजर आया । ढोल की पुरकशिश गूंज और मांदल की हुलस के साथ थाली की खनक पर लयबद्ध थिरकन करते आदिवासी युवाओं की टोलियां उत्सव के उत्साह का प्रकट करना देखते ही बनता था  ।
इतिहास
भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल मेले औऱ हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है क्योंकि इन मेलों में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं इसलिए इसे भगोरिया कहा जाता है।
कैसा होता है भगोरिया मेला...
युवक-युवतियां आते हैं सज-संवरकर
बताया जाता है कि इस त्यौहार के दौरान समुदाय के नौजवान सदस्यों को अपने जीवनसाथी चुनने की पूरी आज़ादी होती है। यह जीवन और प्रेम का उत्सव है जो संगीत, नृत्य और रंगों के साथ मनाया जाता है।इस दौरान मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में कई मेले लगते हैं और हज़ारों की संख्या में नौजवान युवक-युवतियां सज-संवरकर इन मेलों में शिरकत करते हैं।





पारंपरिक रंगीन कपड़ों में सजे-धजे नौजवान लोगों को इस तरह से मेले में अपने जीवनसाथी को ढूंढ़ते हुए देखना वाकई में एक रोमांचकारी अहसास है। मेले के दौरान कुछ आदिवासी लोग बांसुरी बजाते हैं और अपने-अपने खेल-तमाशे दिखाते हैं। वहीं पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र मंदल और ढोल की थाप पर नाचते-गाते हैं। भगोरिया के मेले में जब जींस पहने और चश्मे लगाए नौजवान दिखते हैं तो उनमें आधुनिक दुनिया की भी झलक दिखती है।
संस्कृति का उत्साह और उल्लास ग्रामीणों के चेहरे पर साफ नजर आता है । किसी को झूले-चकरी का आनंद आता तो कोई गर्मी से सूखे कंठों को तर करने के लिए आईसक्रीम-बर्फ के गोले, शरबत, पान का लुत्फ उठाता है । 
भगोरिया पर्व को आदिवासी अंचल के बाहर अलग पहचान मिली हुई है। बाहरी लोग इस पर्व को आदिवासियों का वैंलेटाइन वीक मानते हैं। इसकी वजह यह है कि फरवरी माह में आने वाले वेलेंनटाइन सप्ताह की तरह यह भी प्रेम, उमंग और उत्साह का सप्ताह होता है।

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