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Tuesday 8 January 2019

नर्मदा जयन्ती 2019 - जबलपुर





नर्मदा जयन्ती 2019 - जबलपुर


प्रतिवर्ष पुण्यदायिनी मां नर्मदा का जन्मदिवस यानी माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती महोत्सव मनाया जाता है। वैसे तो संसार में 999 नदियां हैं, पर नर्मदाजी के सिवा किसी भी नदी की प्रदक्षिणा करने का प्रमाण नहीं देखा। ऐसी नर्मदाजी अमरकंटक से प्रवाहित होकर रत्नासागर में समाहित हुई है और अनेक जीवों का उद्धार भी किया है।

युगों से हम सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, हम इसका सम्मान और पूजन करते हैं। ऐसे में कोई शक्ति अजर-अमर होकर लोकहित में अग्रसर रहे तो उनका जन्म कौन नहीं मनाएगा।

एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा-विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे। अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आंखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया।

देवताओं ने निवेदन किया- हे भगवन्‌! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत-से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा आप ही कुछ उपाय बताइए। तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिन्दु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।

'माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥'

- माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।

धर्म शास्त्रों के अनुसार माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल विंध्य पर्वत पर अमरकंटक नामक स्थान पर माना जाता है। इस बार नर्मदा जयंती का पर्व 12 फरवरी 201९ मंगलवार को है। नर्मदा की उत्पत्ति के संबंध में हिंदू धर्म शास्त्रों में कई कथाएं व किवदंतियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार-
पौराणिक कथानुसार नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री के रूप में जाना जाता है, इसलिए नर्मदा को शांकरी भी कहते हैं। कथानुसार लोक कल्याण के लिए भगवान शंकर तपस्या करने के लिए मैकाले पर्वत पर पहुंचे। उनकी पसीनों की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई। जो शांकरी व नर्मदा कहलाई। शिव के आदेशनुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैकाले पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकाले सुता भी कहलाई।
एक अन्य कथा के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणर्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहीत रहने का आदेश दिया। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा। इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते है।
नर्मदा जयंती
दो दिवसीय नर्मदा जयंती महोत्सव का शनिवार से शुभारंभ होगा। जयंती समारोह की तैयारी की समीक्षा कलेक्टर जबलपुर करेगें। इस दौरान नर्मदा के सभी घाटों को आकर्षक ढंग से सजाया जाएगा। नर्मदा जयंती महोत्सव इस साल भी श्रद्घा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इस दौरान ११ और १२ फरवरी को ग्वारीघाट पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाएंगे। महोत्सव की शुरूआत मंगलाचरण के साथ होगी । मंगलवार को नर्मदा जयंती के अवसर पर मुख्य समारोह होगा। मुख्य तट ग्वारीघाट में सुबह 4 बजे से भक्तों का आना शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे सूर्य की लालिमा बढ़ती जा रही थी भक्तों की संख्या भी बढ़ती जाती है। नर्मदा जयंती के अवसर पर नर्मदा के घाटों का नजारा देखते ही बनता है। भक्त सुबह से ही नर्मदा तटों पर स्नान और मां नर्मदा की पूजा-अर्चना के लिए पहुंचने लगते है। कोई भक्त मां को चुनरी चढ़ाता है तो कोई आरती-पूजन कर रहा होता है।ग्वारीघाट में हालांकि प्रशासन ने भंडारा पर प्रतिबंध लगाया है । इसके बाद भी समितियों द्वारा भंडारा आयोजित किया जाता है। सुबह नौ बजे से ही घाटों पर भंडारे का आयोजन शुरू हो जाता है। दिन भर लोग नर्मदा तटों पर स्नान कर पूजन अर्चन कर गक्कड भर्ता आदि बनाकर खाते है। घाट के अलावा शहर के अनेक क्षेत्रों में भक्तों ने भंडारा कर प्रसाद वितरित किया जाता है। ग्वारीघाट के अलावा तिलवाराघाट और भेड़ाघाट में भी नर्मदा भक्तों की भीड़ लगी शुरु हो जाती है । 
उत्सव के मुख्य अंग
सन् 1978 से यह नर्मदा जयन्ती उत्सव प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में यह छोटे पैमाने पर था। धीरे-धीरे आज यह नर्मदा महोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है। इस दिन सामूहिक रूप से नर्मदा जी के तट पर एकत्र होकर जबलपुर के निवासी एवं उसके आसपास के ग्रामवासी सामूहिक पूजन करते हैं। कई लोगों द्वारा माँ नर्मदा को चुनरी चढ़ाई जाती है । नर्मदा मैया का अभिषेक करते है । नर्मदा की धार लाखों दीपों से जगमगाती है । रात 12 बजे घाट पर महा आरती होती है। इस अवसर पर रात्रि को नर्मदा नदी में दीपदान के दृश्य का अत्यधिक दिव्य स्वरूप रहता है, क्योंकि भक्त अपनी श्रध्दानुसार दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करते है। इस प्रकार नदी में असंख्य दीप रात्रि में प्रवाहित होते हैं। दीपों की ज्योति से पूरी नर्मदा जगमगा उठती हैं। बलखाती हुई लहरों में दीप का दृश्य अत्यन्त ही मनोहारी दिखाई देता है। नर्मदा जयन्ती समारोह में नर्मदा के भुक्ति-मुक्ति दायी स्वरूप पर विद्वानों के भाषण एवं महात्माओं के प्रवचन होते हैं। यह सब नर्मदा उत्सव की रात्रि में ही आयोजित होता है। दीपदान और नर्मदा अभिषेक इस उत्सव के मुख्य अंग हैं। 
आरती उमा घाट जबलपुर 

नर्मदा जयंती पर जबलपुर के अतिरिक्त नर्मदा तटों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है । वहीं अमरकंटक, मण्डला ,होशंगाबाद , नेमावर और ओंकारेश्‍वर में भी नर्मदा नदी के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है तथा अपनी अपनी परम्परा अनुसार नर्मदा जयंती मानते है। जयंती कार्यक्रमों को देखने और इनमें नर्मदा के भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है । 





ii नर्मदे हर ii 

1 comment:

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