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Thursday 1 June 2017

#Sun-Upasana# सूर्योपासना से क्या लाभ -सूर्य अर्घ्य देने की विधि


सूर्योपासना(Sun Upasana) से क्या लाभ मिलता है।

सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। छठ ब्रत में उगते हुए सूर्य को तथा अस्तांचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यदि आपके जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह नीच के राशि तुला में है तो अशुभ फल से बचने के लिए प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। वही यदि सूर्य किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर सुबह स्थान में बैठा है तो सूर्योपासना करनी चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में सूर्यदेव अशुभ ग्रहो यथा शनि, राहु-केतु, के प्रभाव में है तो वैसे व्यक्ति को अवश्य ही प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए।

निम्न वैदिक मन्त्र से प्रतिदिन प्रातः एवं सायं संध्या में सूर्य देवता को अर्ध्य देने उपरान्त अन्जुलिबद्ध होकर प्रार्थना की जाती है -

तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् |
पश्येम शरदः शतं जीवम शरदः शतग्वँशृणुयाम
शरदः शतं प्र ब्रवाम् शरदः शतमदीनाः स्याम
शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् || यजु. ३६.२४||

पदार्थ :- हे परमेश्वर ! आप जो (देवहितम्) विद्वानों के लिये हितकारी( शुक्रम्) शुद्ध ( चक्षुः) नेत्र के तुल्य सबको दिखाने वाले ( पुरस्तात्) पूर्वकाल अर्थात् अनादि काल से ( उत् , चरत् ) उत्कृष्टता के साथ सबके ज्ञाता हैं ( तत् ) उस चेतन ब्रह्म आपको ( शतम् , शरदः) सौ वर्ष तक ( पश्येम ) देखें ( शतम् , शरदः ) सौ वर्ष तक ( जीवेम्) प्राणोंको धारण करें जीवें ( शतम् , शरदः ) सौ वर्ष पर्यन्त ( शृणुयाम्) शास्त्रों वा मङ्गल वचनों को सुनें ( शतम्, शरदः ) सौ वर्ष पर्यन्त ( प्रब्रवाम्) पढ़ावें वा उपदेश करें ( शतम् , शरदः ) सौ वर्ष पर्यन्त ( अदीनाः) दीनता रहित ( स्याम्) हों ( च ) और ( शतात् , शरदः ) सौ वर्ष से ( भूयः )अधिक भी देखें जीवें सुनें पढ़ें उपदेश करें और अदीन रहें |
भावार्थ :- हे परमेश्वर ! आप की कृपा आउर आपके विज्ञान से आपकी रचना को देखते हुए आप के साथ युक्त नीरोग और सावधान हुए हम लोग समस्तैन्द्रियों से युक्त सौ वर्ष से अधिक जेवें सत्य शास्त्रों और आप के गुणों को सुनें वेदादि को पढ़ावें सत्य का उपदेश करें कभी किसी वस्तु के विना पराधीन न अहों सदैव स्वतन्त्र हुए निरन्तर आनन्द भोगें और दूसरों को आनन्दित करें |
Sun Upasana – सूर्य अर्घ्य देने की विधि
*सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।
*सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।
*उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।
*पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
*रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।
*जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।
*ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।
*सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।
*यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।
*जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए।
*पुनः उसके बाद दोनों हाथो से जल और भूमि को स्पर्श करे और ललाट, आँख कान तथा गला छुकर भगवान सूर्य देव को एकबार प्रणाम करें।

आने वाले पर्यावरण दिवस के पूर्व समाज को समर्पित | हम भारतीय प्रतिदिन पर्यावरण दिवस इस मन्त्र की दृष्टि में मनाते हैं | भारतीय पद्धतियों को अपनाएँ और सर्वदा सुखी रहें|

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