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Tuesday 9 February 2016

विटामिन डी #Vitamin-D की कमी है जानलेवा

शरीर में विटामिन डी की कमी धीरे धीरे बन जाती है जानलेवा 
देश के नागरिकों में विटामिन डी की कमी महामारी का रूप लेती प्रतीत हो रही है. तकरीबन 90 फीसदी आबादी विटामिन डी की कमी से पीडि़त है. देश के सभी हिस्सों में भरपूर मात्रा में धूप होने के बावजूद इतनी अधिक आबादी में विटामिन डी की कमी पाई जाना हैरानी का विषय है. विटामिन डी, जिसे विटामिन धूप भी कहा जाता है, धूप में बैठने से प्राप्त हो जाता है. यह शरीर में होमियोस्टेसिस को संतुलित रख कर हड्डियों को अच्छी सेहत देता है और कई बीमारियों से बचाने में मदद करता है. इस की कमी के प्रतिकूल प्रभावों के साथसाथ इस के हमारी सेहत पर दूरगामी प्रभाव भी होते हैं. विटामिन डी की कमी होने के चलते दिल के रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसे रोग भी हो सकते हैं. देश में इस की कमी नवजात बच्चों से ले कर किशोरों, बालिगों, बड़ी उम्र के लोगों और महिला व पुरुषों में एकसमान पाई जा रही है. इस के साथ ही, अब गर्भवती महिलाओं और कामकाजी युवाओं में भी यह कमी पाई जाने लगी है.
अधिकता: विटामिन डी की अधिकता से शरीर के विभिन्न अंगों, जैसे गुर्दों में, हृदय में, रक्त रक्त वाहिकाओं में और अन्य स्थानों पर, एक प्रकार की पथरी उत्पन्न हो सकती है। ये विटामिन कैल्शियम का बना होता है, अतः इसके द्वारा पथरी भी बन सकती है। इससे रक्तचाप बढ सकता है, रक्त में कोलेस्टेरॉल बढ़ सकता है और हृदय पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही चक्कर आना, कमजोरी लगना और सिरदर्द, आदि भी हो सकता है। पेट खराब होने से दस्त भी हो सकता है।
विटामिन डी क्या है 
विटामिन डी वसा-घुलनशील प्रो-हार्मोन का एक समूह होता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं:विटामिन डी २ (या अर्गोकेलसीफेरोल) एवं विटामिन डी ३ (या कोलेकेलसीफेरोल).सूर्य के प्रकाश, खाद्य एवं अन्य पूरकों से प्राप्त विटामिन डी निष्क्रीय होता है। इसे शरीर में सक्रिय होने के लिये कम से कम दो हाईड्रॉक्सिलेशन अभिक्रियाएं वांछित होती हैं। शरीर में मिलने वाला कैल्सीट्राईऑल विटामिन डी का सक्रिय रूप होता है। त्वचा जब धूप के संपर्क में आती है तो शरीर में विटामिन डी निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है।  विटामिन डी की मदद से कैल्शियम को शरीर में बनाए रखने में मदद मिलती है जो हड्डियों की मजबूती के लिए अत्यावश्यक होता है। इसके अभाव में हड्डी कमजोर होती हैं व टूट भी सकती हैं। छोटे बच्चों में यह स्थिति रिकेट्स कहलाती है और व्यस्कों में हड्डी के मुलायम होने को ओस्टीयोमलेशिया कहते हैं। इसके अलावा, हड्डी के पतला और कमजोर होने को ओस्टीयोपोरोसिस कहते हैं। इसके अलावा विटामिन डी कैंसर, क्षय रोग जैसे रोगों से भी बचाव करता है।
डेनमार्क के शोधकर्ताओं के अनुसार विटामिन डी शरीर की टी-कोशिकाओं की क्रियाविधि में वृद्धि करता है, जो किसी भी बाहरी संक्रमण से शरीर की रक्षा करती हैं। इसकी पर्याप्त मात्रा के बिना प्रतिरक्षा प्रणालीकी टी-कोशिकाएं बाहरी संक्रमण पर प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहती हैं। टी-कोशिकाएं सक्रिय होने के लिए विटामिन डी पर निर्भर रहती हैं।जब भी किसी टी-कोशिका का किसी बाहरी संक्रमण से सामना होता है, यह विटामिन डी की उपलब्धता के लिए एक संकेत भेजती है। इसलिये टी-कोशिकाओं को सक्रिय होने के लिए भी विटामिन डी आवश्यक होता है। यदि इन कोशिकाओं को रक्त में पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिलता, तो वे चलना भी शुरू नहीं करतीं हैं।
विटामिन-डी के प्रकार
विटामिन-डी पांच प्रकार का होता है -विटामिन-डी1, विटामिन-डी2, विटामिन-डी3, विटामिन-डी4 और विटामिन-डी5। मानव शरीर के लिए विटामिन-डी2 और डी-3 बेहद जरूरी हैं। 
विटामिन-डी टेस्ट 
यह टेस्ट मुख्यतः 25 हाइड्रॉक्सी विटामिन-डी के रूप में किया जाता है, जो कि विटामिन-डी मापने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। इसके लिए रक्त का नमूना नस से लिया जाता है और एलिसा या कैलिल्टूमिसेंसनस तकनीक से टेस्ट लगाया जाता है। विटामिन-डी अन्य विटामिनों से भिन्न है।
विटामिन-डी क्यों जरूरी है
- इम्यून सिस्टम को नियमित रखता है।
- यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो डेनवर स्कूल ऑफ मेडिसिन, मैसाच्युसेट्स जनरल हॉस्पिटल और बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों के मुताबिक सर्दी, जुकाम के लक्षणों को दूर करने में भी यह कारगर है।
- अमेरिका की ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के न्यूरोइम्यूनोलॉजी सेंटर में चेयरमैन डेनिस बोरडे के अनुसार यह मल्टीपल स्केलरोसिस के खतरे को भी कम करता है। 
- एक शोध के मुताबिक विटामिन-डी मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को सुचारु रखने में भी अहम भूमिका निभाता है। 
- जॉर्जिया के मेडिकल कॉलेज में किए गए एक शोध की मानें तो शरीर के वजन को संतुलित रखने में भी इसकी अहम भूमिका है।
- अस्थमा के लक्षणों को कम करने में भी विटामिन-डी लाभदायक है।
- 2012 में सामने आई प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज की रिपोर्ट के मुताबिक विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा ट्यूबरोकुलोसिस के मरीजों को जल्द राहत देने में कारगर है
 -अध्ययनों में पाया गया है कि एथलीटों में विटामिन डी की कमी होने के कारण उनके शरीर का एनर्जी लेवल कम होने के साथ-साथ सहन शक्ति की कमी हो जाने से वो सही ढंग से परफॉर्म नहीं कर पाते ।
-मोटापा बढ़ने के साथ ही शरीर में विटामिन-डी का स्तर कम होता जाता है । जो लोग मोटापे जैसी बीमारी से ग्रस्त है उन्हें विटामिन डी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ मोटापे को बी कम करने का प्रयास करना चाहिए।
- सिर में पसीना आना-सिर में अत्यधिक पसीना आना विटामिन डी की कमी होने का संकेत है।
- एलर्जी-विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा शरीर को किसी भी एलर्जी से बचाने में मदद करती है लेकिन एक अध्ययन में 6000 लोगों को शामिल किया गया और जिनके शरीर में विटामिन डी की कमी थी उन्हें एलर्जी होने का खतरा ज्यादा था।
- कमर में दर्द रहना-विटामिन डी की कमी होने के कारण कमर में दर्द रहता है।
विटामिन डी की कमी के कारण मसूड़ों संबंधी बीमारियां होने का खतरा पैदा है जाता है जैसे मसूड़ों में सूजन, लाल होना, और मसूड़ों से खून बहना आदि।
कैसे करें रोकथाम
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने रोजाना 400 आईयू विटामिन डी लेने की सलाह दी है। हमें रोजाना खून के संचार, मांसपेशियों की गतिविधियों, दिल संबंधी काम और संक्रमणों व बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त रखने के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है। विटामिन डी से युक्त भारतीय डाइट सिर्फ रोजाना की जरूरत का 10 प्रतिशत ही पूरा कर पाती है।

भारतीयों में विटामिन डी की कमी के कारण
भारतीयों में इस की कमी के कई कारण पाए जाते हैं, जैसे : 
भारतीय चमड़ी की टोन : मिलेनिन की कमी से चमड़ी की धूप सोखने की क्षमता कम हो जाती है, इसलिए गहरे रंग के भारतीयों को गोरे लोगों के मुकाबले 20 से 40 गुना ज्यादा धूप सेंकनी पड़ती है.
धूप से बचने की सोच : बहुत से लोग ऐसे हैं जिन का रंग साफ है, वे यह सोचते हैं कि वे ज्यादा सुंदर दिखते हैं. इस मानसिकता के चलते लोग तीव्र धूप के समय बाहर निकलने से कतराते हैं या अत्यधिक एसपीएफ वाले सनस्क्रीन लोशन लगाते हैं. लोग बच्चों को बाहर धूप में खेलने के लिए भी नहीं भेजते, घर के अंदर ही खेलने के लिए उत्साहित करते हैं. फिर भी अगर किसी को बाहर जाना पड़े तो वह अपनेआप को पूरी तरह से ढक लेता है. इस तरह धूप से कतराने की वजह से शरीर में विटामिन डी की अत्यधिक कमी हो जाती है.
शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता : विटामिन डी आमतौर पर पशुओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थों में पाया जाता है, जिन में डेयरी उत्पाद, अंडे, मछली आदि शामिल हैं. लेकिन ज्यादातर भारतीय शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देते हैं, जिस वजह से विटामिन डी की कमी होने की संभावना रहती है.
तनावपूर्ण कामकाजी माहौल : बढ़ते कामकाजी दबाव और प्रतिस्पर्धा के माहौल में युवा पीढ़ी में विटामिन डी की कमी पाई जाती है. इस का मुख्य कारण बंद केबिनों में पूरा दिन बैठ के घंटों काम करना है, जिस वजह से वे लंबे समय तक धूप से दूर रहते हैं.
तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता : तकनीक के फायदों के साथ इस के नुकसान भी होते हैं. युवा अपने दोस्तों के साथ धूप में फुटबाल के मैदान में खेलने का मजा नहीं ले पाते. या तो वे पूरे दिन घर के अंदर बैठ कर वीडियो गेम खेलते हैं या फिर पूरे दिन टीवी के सामने बैठे रहते हैं. मनोरंजन के लिए तकनीक पर इतनी अधिक निर्भरता बच्चों को धूप से दूर रखती है और उन में विटामिन डी की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है.
विटामिन डी फोर्टिफिकेशन के लिए राष्ट्रीय नीति न होना : पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में फूड फोर्टिफिकेशन की कोई नीति नहीं है. अमेरिका और कनाडा में लागू फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम को काफी सफलता मिली है. यूएसए में दूध की फोर्टिफिकेशन 1930 से लागू है, जबकि विटामिन डी की फोर्टिफिकेशन स्वैच्छिक है. फोर्टिफिकेशन का अर्थ किसी उपचार में मौजूद तत्वों की मात्रा से है. जरूरत से ज्यादा फोर्टिफिकेशन न हो, इसलिए इस पर सख्ती से नियंत्रण किया जाता है. यूएस में बिकने वाले ज्यादातर दूध में विटामिन डी मिलाया जाता है. पनीर और पनीरयुक्त उत्पादों को भी फोर्टिफिकेशन की मान्यता प्राप्त है. कुछ कंपनियां नाश्ते के उत्पादों दलिया, सोया दूध, राइस मिल्क और संतरे के जूस में विटामिन डी कैल्शियम के साथ डालती हैं. इस तर्ज पर अगर भारत में राष्ट्रीय नीति लागू की जाए तो यह इस महामारी को काबू करने में मदद कर सकती है.
अस्वस्थ खानपान आदतें : औद्योगिकीकरण की वजह से लोगों में माइक्रोन्यूट्रिंएंट्स ग्रहण करने में कमी आ गई है, क्योंकि खाद्य उद्योग पूरी तरह से नमक, चीनी, सब्जियों की वसा और रिफाइंड अनाज पर निर्भर करता है, जो विटामिन और खनिज पदार्थों के बहुत ही कम गुणवत्ता के स्रोत हैं. जो लोग अपना पूरा पोषण इन्हीं उत्पादों से लेते हैं उन की पोषक तत्त्वों की प्रतिदिन की आवश्यक खुराक उन्हें मिल नहीं पाती, जिन में विटामिन डी की कमी भी शामिल है.
अज्ञानता व उपेक्षा
यह बीमारी जांच के दायरे में बहुत कम आ पाई है. इस की वजहें हैं :
लोगों को विटामिन डी की कमी से होने वाले खतरों के बारे में पता ही नहीं है.
डाक्टर मरीजों को विटामिन डी के महत्त्व के बारे में जागरूक ही नहीं करते हैं.
लोग छोटीमोटी थकावट और दर्द को बहुत गंभीरता से नहीं लेते और उन का इलाज आम दुकानों पर उपलब्ध दर्दनिवारक गोलियों से कर लेते हैं. लेकिन जो बात उन्हें नहीं पता, वह यह है कि मामूली थकान और दर्द विटामिन डी की कमी की वजह से होते हैं.
इस बीमारी के स्पष्ट लक्षण पता न होने की वजह से इस की जांच नहीं हो पाती. लोगों में इस बात की जानकारी की भी कमी है कि विटामिन डी की कमी से सिर्फ हड्डियों पर ही नहीं, संपूर्ण सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है. नतीजतन, विटामिन डी की कमी को हलके में नहीं लेना चाहिए. इस के कई तुरंत प्रभाव और कई दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव सेहत पर पड़ते हैं. 

इनका करें सेवन
विटामिन डी वसा-घुलनशील विटामिन होता है जो शरीर को कैल्सियम सोखने में मदद करता है। इसलिए शरीर में विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए इन खाद्द पदार्थों का सहारा लेना ही पड़ेगा:
मछली: मछली विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत होती है। जो मांसाहारी होते हैं वे मछली के द्वारा विटामिन डी की कमी को पूरा कर सकते हैं। मछली में उच्च मात्रा में फैटी एसिड्स होते हैं, जैसे- सामन, ट्यूना, हिलसा, सार्डिन, कड, मैकरल आदि।
फार्टफाइड फूड्स: फूड के प्रोसेसिंग के दौरान जो विटामिन और मिनरल खो जाते हैं, उस कमी को फार्टफाइड फूड्स पूरा करने में मदद करते हैं और खाद्द के पौष्टिकता को भी बढ़ाते हैं। विटामिन डी युक्त फार्टफाइड फूड्स में ब्रेड, सेरल, दूध,पनीर, चीज़, सोया मिल्क और संतरा का जूस आदि आते हैं।
मशरूम: कुछ मशरूमों में विटामिन डी, प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं,जैसे- वाइट बटन, वाइल्ड एडिबल, और चैन्ट्रल।
दूध और दूध से बनी चीजें: दूध पीना बहुत ज़रूरी होता है मगर कुछ लोगों को दूध पीना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। उन लोगों को दूध से बनी चीजों को खाना चाहिए, क्योंकि दूध में कैल्सियम और विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में होता है, जैसे- चीज़ या दही। दही सिर्फ आपके शरीर को पौष्टिकता ही प्रदान नहीं करता है बल्कि कैल्सियम को सोखने में भी मदद करता है।
अंडा और मीट: अंडे की जर्दी और गाय का लीवर भी विटामिन डी का अच्छा स्रोत होता है।
विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए दवा का सहारा न लेकर प्राकृतिक खाद्दों का सेवन करना अच्छा होता है। 
महिलाएं शुरू से ही अपने खाने में विटामिन डी का सेवन करें। 
विटामिन डी की कमी महिलाओं में उन दिनों में काफी परेशान करता है। इसलिए इसकी पूर्ति से महिलाओं को उन दिनों के दौरान होने वाले प्रीमेन्सट्रअल सिंड्रोम में भी सहायता मिलती है। जिन औरतों में विटामिन डी की कमी होती है, उनके बच्चों को विटामिन डी और कम मात्रा में मिल पाता है। ऐसे में बच्चे में रिकेट्स होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए महिलाओं को स्तनपान के दौरान शुरुआती तीन माह में विटामिन डी के सप्लीमेंट्स सावधानीपूर्वक लेने चाहिए, क्योंकि इससे यूरेनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। मुंबई स्थित पी डी हिंदुजा हास्पिटल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा।संजय अग्रवाल का कहना है कि सिर्फ यह एक ऐसा विटामिन है, जो हमें मुफ्त में उपलब्ध है। पर विटामिन डी हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। यह शरीर में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शरीर में विटामिन डी की उचित मात्रा उच्च रक्तचाप के खतरे को कम करता है। इसकी कमी से मेनोपॉज के बाद महिलाओं में आस्टियोपोरेसिस का खतरा बढ़ जाता है।
सावधानी बरतें-
उम्र, नस्ल, मोटापा, किडनी सबंधी बीमारी लीवर की बीमारी और दूसरी अन्य मेडिकल स्थितियां जैसे कि क्रोहिन बीमारी, कायस्टिक फिबरोसिस और सिलियक बीमारी भी विटामिन डी की कमी के कारण होते है। जो रोगी बहुत तरह की दवाइयों जिसमें एंटीेकोव्ंयूसेटं और एड्स/एचआईवी से जुड़ी दवाइयां लेते है उन्हें भी विटामिन की कमी होने का रिस्क रहता है। तो आजकल विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों को इसके प्रति जागरूक होने की जरूरत है और सरकार को भी विटामिन डी की स्क्रीनिंग, फोर्टीफिकेशन और सप्लीमेटं को लेकर राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की इसकी जरूरत के बारे में पता चले।
विटामिन डी की कमी का प्रभाव
विटामिन डी की कमी से कैल्शियम तथा फास्फोरस आँतों में शोषित नहीं हो पाते हैं,परिणामस्वरूप अस्थियों तथा दाँतों पर कैल्शियम नहीं जम पाता है। जिसके फलस्वरूप वे कमजोर हो जाते हैं। दुर्बल हçड्डयाँ शरीर का भार नहीं सह पातीं और उनमें अनेक प्रकार सकी विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इसकी कमी से चार प्रकार के रोग होते हैं। रिकेट्स, पेशीय मरोड, अस्थि विकृति या आस्टोमलेशिया हैं। महिलाओं में विटामिन डी की कमी अनेक प्रभाव उत्पन्न करती है शोधकर्ताओं ने अपने शोध में कहा है कि इसकी कमी से फेफडों की बनावट और कामकाज में अंतर आ जाता है। तथा इनकी कार्य करने की क्षमता मे कमी आती है, साथ ही फेफडें सिकुड भी जाते हैं। और इस वजह से वायु को बहुत ज्यादा प्रतिरोध का सामना करना पडता है। 
1-गर्भवती महिलाओं को तरह-तरह की समस्याओं से होती है। गर्भवस्था में मल्टीपल सिरोसिस का खतरा बढ जाता है, जिसका कारण विटामिन डी की कमी होना है।
2-विटामिन डी की कमी से हड्डियों की सतह कमजोर पड जाती है। जिससे हड्डियों से जुडी कई समस्याओं का जन्म होता है। 
3-शरीर के भार का केंद्र कमर होती है। रीढ की हड्डी पूरी तरह कमर पर टिकी होती है। यदि विटामिन डी की कमी हो, तो रीढ के लिए शरीर का भार ढोपाना एक चुनौती बन जाती है। 
4-विटामिन डी आंखों के लिए लाभदायक है। एक रिसर्च के अनुसार इसके सेवन से पास की चीजों को देखाने में होने वाली दिक्कत में सुधार होता है।
5-विटामिन डी की कमी से लडकियों में किशोरावस्था में दिक्कत आ सकती है। इससे उन्हें सांस लेने संबंधी बीमारी भी हो सकती है। 
6-विटामिन डी की मात्रा और शरीर में मोटापे के सूचक बॉडी मास इंडेक्स, कमर का आकार और स्कीन फोल्ड रेशीओं में गहरा संबंध है। जिन महिलाओं में विटामिन डी की कमी थी, उनमें विटामिन डी की मात्रा अधिक होने वालियों की अपेक्षाकृत मोटापा तेजी से बढता है।
7- अगर महिलाएं शुरू से अपने खाने में विटामिन डी का सेवन करती रहें,तो उन्हें रजोनिवृति के बाद हड्डियों  से जुडी समस्याओं का सामना कम करना पडता है।



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